हर इच्छा करना चाहते हैं पूरी तो इस तरह करें गायत्री मंत्र का जाप
punjabkesari.in Friday, May 10, 2019 - 10:27 AM (IST)
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हिंदू शास्त्रों में बहुत मंत्र दिए गए हैं, जिनका जाप दैनिक जीवन में करना लभदयायक साबित होता है। इनमें एक है गायत्री मंत्र, ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है कि जो भी जातक इस मंत्र का उच्चारण करता है। बल्कि इसके बारे में कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति महामंत्र यानि गायत्री मंत्र को रोज़ाना करने के नियम बना लेता है तो उसके जीवन के सारे अभाव दूर हो जाते हैं और उसका जीवन सफलता व और सुख-समृद्धि से भर जाता है। हो सकता है आप में बहुत से ये सब बातें जानते हों लेकिन ऐसे भी कई लोग जिन्हें आज तक इससे जुड़ी बहुक सी बातें नहीं पता। जैसे कि इस चमत्कारी मंत्र का जाप दिन में कब, कहां, कैसे और कितनी बार करना चाहिए। तो अगर आप भी इल लोगों की गिनती में आते हैं तो चलिए आज आपकी इस कशमकश के दूर करते हैं कि इसका जाप कैसे करना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र नें कहा गया है कि सुबह बिस्तर से उठते अष्ट कर्मों को जीतने के लिए 8 बार गायत्री महामंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
सूर्योदय के समय घर के पूजा स्थल में या किसी अन्य जगह पर बैठकर 3 माला या 108 बार गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। कहा जाता है कि इससे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में इच्छा पूर्ति के साथ सदैव रक्षा होती है।
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रोज़ घर से बाहर जाते समय 5 या 11 बार गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए, इससे समृद्धि सफलता, सिद्धि और उच्च जीवन की प्राप्ति होती है।
जब भी किसी मंदिर में में प्रवेश करें तो 12 बार परमात्मा के दिव्य गुणों को याद करते हुए गायत्री मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
अगर घर से निकलते समय या किसी ज़रूरी काम के लिए जाते समय छींक आ जाए तो उसी समय 1 बार गायत्री मंत्र का उच्चारण करने से सभी अमंगल दूर हो जाते हैं।
रोज़ रात को सोते समय 11 बार मन में गायत्री मंत्र का जप करने से कई प्रकार के भय दूर हो जाते हैं।
बहुत कम लोग इस बात का पता होगा कि गायत्री महामंत्र का उपयोग सूर्य देवता की उपासना साधना के लिए भी किया जाता है।
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गायत्री महामंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वःतत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
गायत्री महामंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या- इस मंत्र के पहले 9 शब्द ईश्वर के दिव्य गुणों की व्याख्या करते हैं।
ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाले
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाले
स्वः = सुख़ प्रदान करने वाले
तत = वह
सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाले
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के* *योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि
यो = जो
नः = हमारी
प्रचोदयात् = हमें शक्ति दे
अर्थात- प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।