Gayatri Jayanti Birth Story: कैसे हुई मां गायत्री की उत्पत्ति, पढ़ें कथा

punjabkesari.in Thursday, Jun 05, 2025 - 03:00 PM (IST)

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Gayatri mantra katha: गायत्री जयंती वह शुभ तिथि है जब वेदों की जननी मानी जाने वाली गायत्री माता का ब्रह्मांड में अवतरण हुआ था। यह सिर्फ़ किसी देवी का जन्मदिन नहीं, बल्कि मानव चेतना में आध्यात्मिक प्रकाश के प्रकट होने का दिन है। सनातन पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की निर्जला एकादशी पर मां गायत्री का अवतरण हुआ था। कहते हैं गुरु विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को इस पावन तिथि पर पहली बार सर्वसाधारण के लिए बोला था। तभी से ज्येष्ठ माह की एकादशी पर गायत्री जयंती मनाई जाने लगी। बहुत सारे स्थानों पर ज्येष्ठ माह में गंगा दशहरा की तिथि पर गायत्री जयंती मनाए जाने का विधान है। 

Gayatri Jayanti
माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की। आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाए उसी तरह ऋषि विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पहुंचाया।

Gayatri Mantra Gayatri Jayanti
अन्य मान्यता के अनुसार हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मां गायत्री का अवतरण दिवस होता है इसलिए इसे गायत्री जयंती के रूप में मनाए जाने का विधान है। मां गायत्री भारतीय संस्कृति की जननी हैं।

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Importance and effect of Gayatri Mantra आइए जानें, इस मत में क्या कहते हैं शास्त्र देवर्षि नारद : ‘गायत्री भक्ति का ही स्वरूप है। जहां भक्ति रूपी गायत्री हैं वहां श्री नारायण का निवास होने में कोई संदेह नहीं करना चाहिए।’

ऋषि विश्वामित्र : ‘गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला और कोई मंत्र नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से तीन वर्ष तक गायत्री जाप करता है वह ईश्वर को प्राप्त करता है। जो द्विज दोनों संध्याओं में गायत्री जपता है वह वेद पढऩे के फल को प्राप्त करता है। अन्य कोई साधना करे या न करे केवल गायत्री जप से भी सिद्धि पा सकता है। नित्य एक हजार जप करने वाला पापों से वैसे ही छूट जाता है, जैसे केंचुली से सांप छूट जाता है।

महर्षि व्यास : जिस तरह पुष्प का सार शहद, दूध का सार घृत है उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री है। सिद्ध की हुई गायत्री कामधेनु के समान है। गंगा शरीर के पापों को निर्मल करती है, गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र होती है। जो गायत्री छोड़कर अन्य उपासनाएं करता है वह पकवान छोड़कर भिक्षा मांगने वाले के समान मूर्ख है।’

चरक ऋषि : जो ब्रह्मचर्य गायत्री देवी की उपासना करता है और आंवले के ताजे फलों का सेवन करता है वह दीर्घजीवी होता है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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