Garh Mata Mandir: अटूट आस्था का प्रतीक है 700 वर्ष पुराना गढ़ माता मंदिर
punjabkesari.in Wednesday, Jul 12, 2023 - 09:38 AM (IST)

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Garh Mata Mandir Chamba: हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत जिलों में शुमार चम्बा जिला अपनी प्राकृतिक खूबसूरती एवं धार्मिक स्थलों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। जहां हर ओर बिखरी प्राकृतिक छटा लाखों सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती है, वहीं धार्मिक श्रद्धा भी लाखों लोगों को यहां खींच कर लाती है। जिले में कई ऐसे प्राकृतिक खूबसूरत मनमोहक स्थल मौजूद हैं, जो कहीं न कहीं से इतिहास समेटे हुए हैं। जिला चम्बा के उपमंडल सलूणी की किहार भांदल तेलका घाटी की सुंदर पहाड़ियों के ऊपर चामुंडा मां का एक भव्य मंदिर है, जहां पर हजारों लोग प्रत्येक वर्ष मां के दर्शन कर अपनी मन्नतों को पूरा करते हैं।
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मंदिर हिमाचल तथा जम्मू कश्मीर की सीमा पर स्थित है। जिसे चम्बा रियासत के राजा पृथ्वी सिंह द्वारा पृथल जोत पर आज से लगभग 700 वर्ष पूर्व बनवाया गया था। इसलिए गढ़ माता को पृथि जोत के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि राजा पृथ्वी सिंह किसी दूसरी रियासत में बंदी थे। तब मां ने स्वप्न में प्रकट होकर कहा कि राजा अगर आप गढ़ नामक स्थान पर मेरा मंदिर स्थापित कर दोगे तो मैं किसी भी तरह से आपको यहां से रिहा करवा दूंगी। राजा ने हामी भर दी। राजा की नींद खुली तो देखा कि जेल के दरवाजे खुले पड़े थे और सभी रक्षक सोए हुए थे। तब राजा वहां से चुपके से निकल आए और सीधा चम्बा की बजाय माता के कहे अनुसार उपमंडल सलूणी की पहाड़ियों पर पहुंच गए।
जब राजा रात को उस स्थान पर रुके तो अचानक आसमान से जोरदार गर्जना के साथ आसमानी बिजली एक शिला पर जा गिरी और शिला फट गई उसमें से माता ने राजा को दर्शन दिए और फिर त्रिशूल रूप में विराजमान हो गईं। तब से यहां का नाम स्थानीय भाषा में ‘चोंडी की घोड़ी’ अर्थाथ ‘चामुंडा का पत्थर’ पड़ा और जिस स्थान पर राजा ने डेरा डाला हुआ था, उस स्थान को ‘राजा का डेरा’ नाम से जाना जाता है।
इसके बाद राजा ने समस्त क्षेत्रवासियों को बुला कर यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इसमें भी बुजुर्गों व अन्य लोगों से सुनने को मिलता है कि राजा ने जब मंदिर का निर्माण करवाया तो मंदिर के लिए पत्थर सियूल नदी से लिया गया और इसमें खास बात थी कि 20 किलोमीटर तक लोगों की लाइनें लगाई गईं। तब जाकर पत्थरों को सियूल नदी से गढ़ माता पहुंचाया गया। फिर मंदिर का भव्य निर्माण हुआ। कहते हैं कि राजा ने मंदिर की रक्षा के लिए कई पहरेदार भी नियुक्त किए जो साल भर यहां पर तैनात रहते थे।
जब उनका राशन खत्म हो जाता तो वे धुएं से अपना संदेश चम्बा सियासत के राजा तक पहुंचाते और राजा उनके लिए राशन की व्यवस्था करता था। क्षेत्र में माता के चमत्कार को लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। अब इस मंदिर का निर्माण नए सिरे से किया गया है। यहां प्रत्येक वर्ष आश्विन माह की संक्रांति को 2 दिवसीय जातर मेले का आयोजन होता है। इस दौरान यहां जम्मू से भी काफी श्रद्धालु पहुंचते हैं क्योंकि यह मंदिर जम्मू-कश्मीर और हिमाचल की सीमा पर स्थित है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में अपनी ताजा फसलों के अलावा दूध-घी का प्रसाद माता को भेंट करते हैं।
पनोगा गांव से इस मेले में जातर लाई जाती है। वहां से माता चामुंडा के चिन्ह भी लाए जाते हैं। इस दौरान माता के सैंकड़ों गुरजी, जिन्हें स्थानीय भाषा में चेले-चेलियां कहा जाता है, नाचते हैं। अब तो कुछ वर्षों से ‘चुराही नाटी’ का भी आयोजन हो रहा है। यहां कई वर्षों से पनोगा गांव से एक परिवार माता के पुजारी के रूप में माता की सेवा कर रहा है। अब यहां मंदिर समिति का गठन भी हो गया है जिसका संचालन धर्म सिंह पठानिया की देखरेख में किया जाता है।
धार्मिक आस्था के साथ-साथ अद्भुत प्रकृति को समेटे हुए यह स्थान साल भर श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। समय-समय पर कई लोग अपनी मन्नतें पूर्ण होने पर ढोल-नगाड़ों तथा बैंड-बाजे सहित अपनी हाजरी लगाते हैं और कई लोग अपने बच्चों का मुंडन भी यहां करवाते हैं। इतना ही नहीं, श्रद्धा के साथ-साथ यह स्थान प्रकृति की दृष्टि से भी बहुत खूबसूरत है। मंदिर की समुद्र तल से ऊंचाई करीब 9500 मीटर है।
कैसे पहुंचें
डल्हौजी और चम्बा से यह क्षेत्र 80 किलोमीटर दूर है, जहां तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। इससे आगे सड़क नहीं है और लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है। हाल ही में सरकार ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में मान्यता दी है, जिससे यहां के स्थानीय लोगों में घर द्वार में रोजगार की आस जगी है। इस स्थल को अगर सही तरीके से पर्यटक के लिए निखारा जाए तो यह पर्यटन मानचित्र पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएगा।