खुल चुके हैं गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट, दर्शन करने से होगा पापों का नाश

punjabkesari.in Saturday, May 11, 2019 - 10:59 AM (IST)

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हिंदू धर्म में कोई भी धार्मिक यात्रा करना बेहद ही शुभ और अच्छा माना जाता है। इस बात से तो सब वाकिफ ही होंगे कि 4 धाम यात्रा करना बहुत ही सौभाग्य की बात है। कहते हैं कि जो लोग अपने जीवन में 4 धाम यात्रा कर लेते हैं वे बहुत ही भाग्यशाली होते हैं। चार धाम यात्रा को हर साल पूरे 6 महीनों के लिए बंद कर दिया जाता है यानि अक्टूबर-नवंबर के महीने में यात्रा रोक दी जाती है और फिर अप्रैल-मई में दोबारा यात्रा शुरू की जाती है। इस बार भी अक्षय तृतीया के दिन ही यात्रा खुलने का आदेश जारी हुआ था। केदारनाथ के कपाट 9 मई जबकि बद्रीनाथ धाम के दर्शन 10 मई को खोल दिए गए थे। 
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तो वहीं दूसरी ओर गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के भी कपाट अक्षय तृतीया यानि 07 मई को खोल दिए गए। मां गंगा की मूर्ति की स्थापना के साथ ही सुबह 11:30 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के बीच गंगोत्री के कपाट खोले गए। उधर, यमुनोत्री में खरसाली से डोली में लाई गई मां यमुना की मूर्ति की स्थापना के साथ रोहिणी नक्षत्र में दोपहर 1:15 बजे यमुनोत्री के कपाट खोले गए। कपाट खुलने के साथ ही गढ़वाल हिमालय में चार धाम यात्रा शुरू हो गई। यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री, फिर केदारनाथ पहुंचती है और समापन बद्रीनाथ पर होता है। माना जाता है कि इन चारधामों की यात्रा करने वाले श्रद्धालु के समस्त पाप खत्म जाते हैं और आत्मा को जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
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उत्तराखंड की खूबसूरत पहाड़ियों में हर साल गर्मियों के महीनों में चारधाम यात्रा का आयोजन होता है। शास्त्रों में इन चारों स्थलों को काफी पवित्र माना गया है। जीवनदायिनी गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री और यमुना नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री दोनों उत्तरकाशी जिले में हैं। वहीं बद्री विशाल (भगवान विष्णु) का पवित्र स्थल बद्रीनाथ धाम चमोली जिले में स्थित है और भगवान शिव का पवित्र धाम केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। 
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पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ गंगा को धरती पर लाए थे, लेकिन गंगोत्री को ही मां गंगा का उद्गम स्थान माना जाता है। मां गंगा के मंदिर के बारे में बताया जाता है कि गोरखा (नेपाली) ने 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर राज किया था, इसी दौरान गंगोत्री मंदिर गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने बनाया था। उधर यमुनोत्री मंदिर निर्माण के बारे में बताया जाता है कि टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए ये मंदिर बनवाया था, लेकिन भूकम्प से मंदिर विध्वंस हो चुका था इसके बाद मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया। 


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