गणेश चतुर्थीः इस कथा से करें अपना व्रत पूर्ण

punjabkesari.in Sunday, Mar 24, 2019 - 01:01 PM (IST)

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शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के सारे सकंट दूर होते हैं। हिंदू धर्म में इन्हें प्रथम पूज्य देव माना जाता है, इसलिए हर शुभ कार्य को शुरू करने से पहले इनकी पूजा करना अनिवार्य होता है और इसी वजह से ही इन्हें विघ्न हर्ता भी कहते हैं। गणपति को बल, बुद्धि और विवेक का देवता भी माना जाता है। आज हम बात करेंगे हर मास में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी के बारे में।
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ऐसा माना जाता है कि अगर कोई सच्चे मन से इस दिन गणेश चतुर्थी का व्रत करता है तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए हर मास में आने वाली गणेश चतुर्थी का व्रत हर व्यक्ति को करना चाहिए, इससे भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। ज्योतिष के अनुसार इस दिन गणपति की प्रतिमा पर लाल रंग का सिंदूर चढ़ा कर पूजा की जाती है और साथ ही इसकी कथा पढ़ना या सुननी चाहिए। तो चलिए जानते हैं इसकी पौराणिक कथा के बारे में-
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पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव माता पार्वती के साथ नर्मदा नदी के पास बैठे और उनके मन में चौपड खेलने का विचार आया। लेकिन इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बनाया, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते हैं। परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिए तुम बताना की हम में से कौन हारा और कौन जीता। खेल शुरु हुआ और तीन बार खेला गया व तीनों बार माता पार्वती को जीत हासिल हुई। जब खेल खत्म हुआ तो बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया और इस बात को सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने और किचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से क्षमा प्रार्थना की और कहा कि उससे ये अज्ञानता वश हुआ है। तब माता ने कहा कि यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई।
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बहुत समय बाद वहां नाग कन्याएं आईं और उनके साथ उस बालक ने भी गणेश चतुर्थी व्रत का पालन पूरे 21 दिनों तक लगातार किया। उसकी इस भावना को देखकर गणपति खुश हुए और उसे वरदेन मांगने को कहा। तभी उस बालक ने मांगा कि मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के पास कैलाश पहुंच सकुं। भगवान उसे ये वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए। कैलाश पहुंचकर दिव्य बालक ने सारी कथा भोलेनाथ को सुनाई लेकिन उस बालक को शिव के साथ देखकर माता पार्वती भगवान से भी नाराज हो गई। तभी जिस प्रकार बालक ने 21 दिनों तक गणेश चतुर्थी का पालन किया ठीक वैसे ही भोलेनाथ ने भी इस व्रत का पालन किया जिससे कि माता का गुस्सा अपने आप ही शांत हो गया और वे भगवान से मिलने कैलाश पर वापिस आ गई और भगवान से पूछा कि आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिसके परिणाम स्वरूप मैं आपसे मिलने को व्याकुल हो उठी। शिव ने गणेश चतुर्थी व्रत की विधि माता को बताई और माता ने भी कार्तिकेय से मिलने के लिए इस व्रत का पालन किया और 21 वें दिन भगवान कार्तिकेय खुद माता से मिलने उनके पास आ गए। उसके बाद कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेश जी से जन्म से मुक्त होकर ‘ब्रह्म-ऋषि’ होने का वर मांगा। गणेश जी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की और इसलिए श्री गणेश जी चतुर्थी व्रत को मनोकामना व्रत भी कहा जाता है। 
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