भक्त नामदेव जी से जानें, सुखी और सफल जीवन का सूत्र
punjabkesari.in Monday, Nov 18, 2019 - 08:19 AM (IST)
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भगवान विष्णु के परम भक्त नामदेव जी ने बचपन में ही भगवान के दर्शन कर लिए थे। ये जाति के छीम्बा थे और इनके गुरु का नाम ज्ञानदेव था। बचपन में ही इनके पिता का देहांत हो जाने के कारण इनकी माता इन्हें अपने मायके पंढरपुर लाकर इनका पालन-पोषण करने लगीं। इनके नाना का नाम वामदेव था जिनके भक्तिभाव का नामदेव जी पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। ये भगवान की मूर्ति बनाकर खेलते और पूजा करते। एक बार इनके नाना किसी काम से बाहर जाते समय इन्हें भगवान की पूजा का दायित्व सौंप कर चले गए और जाते-जाते कहा कि भगवान को दूध पिलाना, स्वयं मत पी जाना। नाना के आदेश के अनुसार नामदेव जी ने सुबह जल्दी उठ कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर दूध गर्म किया और भगवान की मूर्ति के आगे रख कर भोग लगाने लगे परंतु मूर्ति के दूध न पीने पर इन्होंने भी संकल्प कर लिया कि जब तक भगवान दूध नहीं पिएंगे तब तक वह भी अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।
तीन दिनों तक वह इसी प्रकार भगवान को भोग लगाते रहे परंतु मूर्ति ने दूध नहीं पिया। चौथे दिन नामदेव जी ने दूध गर्म करके कटोरे में डाला और एक हाथ में कटोरा तथा दूसरे हाथ में छुरी लेकर कहा कि यदि भगवान ने आज भी दूध का भोग न लगाया तो मैं अपनी गर्दन काट लूंगा। तभी भगवान कृष्ण प्रकट हुए और नामदेव जी की ओर देख कर हंसते हुए उनके हाथ से दूध का कटोरा लेकर पीने के बाद इन्हें आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद तो नामदेव जी प्रभु की भक्ति में ही लीन रहने लगे।
एक बार मुगल शासक सिकंदर लोधी ने इन्हें बुलाकर अपने भगवान के दर्शन कराने तथा एक मृत गाय को जीवित करने के लिए कह कर नामदेव जी को बेडिय़ों से जकड़ दिया। नामदेव जी बिना किसी भय के श्री हरि का नाम जपने लगे। सात घड़ी समय बीतने पर भगवान विष्णु गरुड़ पर चढ़ कर आए और मृत गाय को जीवित करके नामदेव जी की रक्षा की। यह देख कर लोधी ने अपने अपराध की गुरु जी से क्षमा मांगी।
पंढरपुर में एक बहुत बड़ा सेठ था उसने अपने को सोने से तौलकर नगर के सभी लोगों को सोना दिया। सेठ ने सभी लोगों से पूछा कि कोई रह तो नहीं गया। तब लोगों ने कहा कि भगवान के बहुत बड़े भक्त नामदेव जी रह गए हैं। तब सेठ ने उन्हें बुलाने के लिए अपना सेवक भेजा। तब नामदेव जी सेठ के पास गए और उसकी इच्छा पूछी। सेठ ने कहा कि आप मुझसे दान स्वीकार करें। नामदेव जी ने एक तुलसी के पत्ते पर ‘राम’ नाम लिख कर सेठ को दिया और बोले, ‘‘हमें इसके बराबर सोना दे दो।’’
सेठ ने उसे तराजू में रखकर तौलना शुरू कर दिया। सेठ के पास जितना सोना था सारा तराजू पर रखने पर भी वह उस तुलसी के पत्ते के बराबर नहीं हुआ। सेठ उदास हो गया। तब नामदेव जी ने कहा, ‘‘सेठ तुम ने परिवार सहित जीवन में जितने व्रत, दान, तीर्थ स्नान किए हैं, संकल्प करके जल चढ़ा दो।’’
सेठ ने ऐसा ही किया पर फिर भी वह तुलसी के पत्ते को जिस पर राम नाम लिखा था तौल न सका। इस पर सेठ परिवार सहित नामदेव जी के चरणों में गिर पड़ा और कहा कि आप इतना धन ही ले लीजिए। तब नामदेव जी ने कहा कि हमारे पास राम नाम का अनमोल धन है, हमें इस तुच्छ धन की जरूरत नहीं है। इसके बाद नामदेव जी ने सारे पंढरपुर नगर वासियों से कहा कि देख लो राम नाम की महिमा, आज से सभी धन का मोह छोड़कर रामनाम जाप करो। नामदेव जी की बात सुनकर सभी के हृदय में भगवान की भक्ति जाग गई। सभी लोग राम नाम जपने लगे।
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