रामायण से लेकर महाभारत तक इन 5 योद्धाओं ने दिखाया अपना पराक्रम
punjabkesari.in Wednesday, Nov 20, 2019 - 11:08 AM (IST)
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अगर हिंदू धर्म के मुख्य ग्रंथों की बात करें तो इनमें दो पुराण ऐसे आते हैं जिनका ज़िक्र सबसे ज्यादा किया जाता है। जी हां, आप सही समझ रहे हैं। हम बात करे रहे हैं सबसे प्रमुख माने जाने वाले ग्रंथ रामायण की तथा महाभारत की। इन दोनों ही काल में एक से बढ़कर एक योद्धा और शूरवीर हुए। जहां एक तरफ़ रामायण में भगवान श्री राम और रावण के बीच युद्ध हुआ था, वहीं दूसरी तरफ़ महाभारत काल में पांडवों और कौरवों की बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में 18 दिनों तक भंयकर युद्ध हुआ था। आप में से लगभग इन दोनों ग्रंथों के बारे में बहुत जानते होंगे। यूं तो ये दोनों ग्रंथ एक-दूसरे से अलग है परंतु क्या आप जानते हैं कि इन दोनों में कुछ समानताएं थीं। अब आप सोचेंगे कैसे तो चलिए आपको कुछ ऐसे पात्रों के बारे में बताते हैं जिन्होंने रामायण तथा महाभारत काल दोनों में अपनी एक विशेष भूमिका निभाई थी तथा अपने पराक्रम का ज़ोर दिखाया था।
परशुराम
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव शंकर के साक्षात अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था। परंतु ऐसा कहा जाता था ब्राह्राण कुल में पैदा होने के बाद भी उनके अंदर क्षत्रियों जैसे गुण थे। किंवदंतियों के मुताबिक भगवान परशुराम रामायण और महाभारत काल दोनों में उपस्थित थे। जहां रामायण में इन्होंने देवी सीता के स्वयंवर में धनुष टूटने के बाद भगवान राम को चुनौती दी थी। तो वहीं महाभारत काल में इन्होंने कर्ण और पितामह भीष्म को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्रदान कराई थी।
बजरंगबली
श्री राम के परम भक्त पवनपुत्र हनुमान जी को कौन नहीं जानता। कहा जाता है इनके ही सहयोग श्री राम चंद्र माता सीता को रावण की कैद से आज़ाद करवा पाए थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री राम जी के वरदान स्वरूप कलयुग में जीवित हैं आज भी धरती पर विचरण करते हैं। अब ये तो सब जानते हैं लेकिन महाभारत में भी इनकी विशेष भूमिका रही थी। इसके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। जी हां, महाभारत काल में भीम को हनुमान जी ऐसे समय में मिले जब महाभारत युद्ध की संभावना बनने लगी थी। उस समय हनुमान जी ने भीम को वचन दिया था कि युद्ध के समय वह अर्जुन के रथ पर रहेंगे और पाण्डवों को विजयी बनने में सहयोग करेंगे।
मयासुर
रावण की पत्नी मंदोदरी का पिता राक्षस मयासुर था। बताया जाता है कि वह रामायण और महाभारत दोनों में मौज़ूद था। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में जब भगवान श्री कृष्ण ने इसका अंत करना चाहा तब अर्जुन ने मायासुर को श्री कृष्ण से जीवनदान दिलाया था। जिसके बाद मायासुर ने खंडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ बनाने में सहयोग किया और माया भवन बनाया। कहा जाता है इसी भवन में दुर्योधन मायाजाल में उलझकर पानी में गिर पड़ा था और द्रौपदी ने दुर्योधन का उपहास किया था। जिस कारण दुर्योधन के मन में द्रौपदी के लिए क्रोध और बदले का भाव पैदा हो गया था।
जामवंत
ग्रंथों में किए वर्णन के अनुसार जामवंत की इच्छा थी कि वो श्री राम से मल्लयुद्ध करें। उनकी इसी इच्छा के चलते राम जी ने इन्हें वचन दिया कि अपने अगले अवतार में वे उनकी इस इच्छा को पूरी करेंगे। महाभारत काल के दौरान एक बार जब श्री कृष्ण एक गुफा में गए जहां जामवंत रहते थे। पूरे 8 दिनों तक श्री कृष्ण जामवंत के साथ 8 दिनों तक युद्ध करते रहे। अंत में जामवंत को एहसास हुआ कि श्रीकृष्ण वास्तव में उनके प्रभु राम हैं। जिसके बाद उन्होंने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।
महर्षि दुर्वासा
महर्षि दुर्वासा प्राचीन काल के बहुत बड़े ऋषि माने गए थे। ये उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने जिन्होंने रामायण तथा महाभारत को अपनी आंखों से देखा था। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण एक कथा के अनुसार दुर्वासा के शाप के कारण लक्ष्मण जी को राम जी को दिया वचन भंग करना पड़ा था। तो वहीं महाभारत काल में इन्होंने कुंती को संतान प्राप्ति का मंत्र दिया था। साथ ही इन्होंने दुर्योधन का आतिथ्य स्वीकार किया था।