रावण आज भी जिंदा है, जानें कहां

punjabkesari.in Friday, Sep 29, 2017 - 07:49 AM (IST)

विजयादशमी यानी दशहरा जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि जो विजय का प्रतीक है। विजय जो भगवान श्रीराम ने पाई थी रावण पर, वह रावण जो पर्याय है बुराई, अधर्म, अहंकार और पाप का, वह जीत जिसने पाप के साम्राज्य का जड़ से नाश किया लेकिन क्या बुराई हार गई? पाप का नाश हो गया? क्या रावण वाकई मर गया? युगों से पूरे देश में रावण का पुतला जलाकर दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है। यदि रावण सालों पहले मारा गया था तो फिर वह आज भी हमारे बीच जीवित कैसे है? यदि रावण का नाश हो गया था तो वह कौन है जिसने अभी हाल ही में एक सात साल के मासूम की बेरहमी से जान लेकर एक मां की गोद ही उजाड़ दी? वह कौन है जो आए दिन हमारी अबोध बच्चियों को अपना शिकार बनाता है? वह कौन है जो हमारी बेटियों को दहेज के लिए मार देता है? वह कौन है जो पैसे और पहचान के दम पर किसी और के हक को मार कर उसकी जगह नौकरी ले लेता है? वह कौन है जो सरकारी पदों का दुरुपयोग करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है? वह कौन है जो किसी दुर्घटना में घायल व्यक्ति के दर्द को नजरअंदाज करते हुए घटना का वीडियो बनाना ज्यादा जरूरी समझता है, बजाय उसे अस्पताल ले जाने के?

रावण का इतिहास

एक वह रावण था जिसने वर्षों कठिन तपस्या करके ईश्वर से शक्तियां अर्जित कीं और फिर इन शक्तियों के दुरुपयोग से अपने पाप की लंका का निर्माण किया था। एक आज का रावण है जो पैसे, पद तथा वर्दी रूपी शक्ति अर्जित करके उसके दुरुपयोग से पूरे समाज को ही पाप की लंका में बदल रहा है। क्या यह रावण नहीं है जो आज भी हमारे समाज में जिंदा है? हम बाहर उसका पुतला जलाते हैं लेकिन अपने भीतर उसे पोषित करते हैं। 


रावण जो प्रतीक है बुराई का, अहंकार का, अधर्म का। वह आज तक जीवित इसलिए है कि हम उसके प्रतीक एक पुतले को जलाते हैं न कि उसे, जबकि यदि हमें रावण का सच में नाश करना है तो हमें उसे ही जलाना होगा, उसके प्रतीक को नहीं। वह रावण जो हमारे ही अंदर है लालच के रूप में, झूठ बोलने की प्रवृत्ति के रूप में, अहंकार के रूप में, स्वार्थ के रूप में, वासना के रूप में, आलस्य के रूप में, उस शक्ति के रूप में जो आती है पद और पैसे से, ऐसे कितने ही रूप हैं जिनमें छिपकर रावण हमारे ही भीतर रहता है, हमें उन सभी को जलाना होगा।

रावण का वध

जिस प्रकार अंधकार का नाश करने के लिए एक छोटा-सा दीपक ही काफी है, उसी प्रकार हमारे समाज में व्याप्त इस रावण का नाश करने के लिए एक सोच ही काफी है। यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाएंगे, उन्हें नैतिकता का ज्ञान देंगे, स्वयं उनके सामने उदाहरण प्रस्तुत करेंगे तो हमारे बीच क्या रावण टिक पाएगा? वह सतयुग था जब एक ही रावण था लेकिन आज कलियुग है, आज अनेक रावण हैं। 
उस रावण के दस सिर थे लेकिन हर सिर का एक ही चेहरा था, जबकि आज के रावण का सिर भले ही एक है, पर चेहरे अनेक हैं।


इसलिए इनके लिए एक दिन काफी नहीं है, इन्हें रोज मारना हमें अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। उस रावण को प्रभु श्रीराम ने तीर से मारा था, आज हम सबको उसे संस्कारों से, ज्ञान से और अपनी इच्छाशक्ति से मारना होगा।


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Niyati Bhandari

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