Ekadashi vrat- कब से करनी चाहिए एकादशी व्रत की शुरुआत ? ये है सबसे शुभ दिन और सटीक विधि
punjabkesari.in Sunday, Nov 24, 2024 - 03:05 PM (IST)
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Ekadashi vrat 2024- हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी का अत्यधिक महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार इसी तिथि से देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी एकादशी कहते हैं। हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा होती है। शास्त्रों के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से सीधे बैकुंठ धाम में स्थान मिलता है और जन्म-जन्म के पाप मिट जाते हैं। इस व्रत को करने से साधक को गोदान के समान ही फल मिलता है। जो लोग एकादशी व्रत का प्रारंभ करना चाहते हैं, वे उत्पन्ना एकादशी से एकादशी व्रत शुरू कर सकते हैं। इस व्रत के प्रभाव से श्री चरणों में स्थान मिलता है। इस बार उत्पन्ना एकादशी के दिन 3 शुभ योग बन रहे हैं।जिस वजह से ये दिन बेहद ही पावन माना जा रहा है। साल 2024 में उत्पन्ना एकादशी कब पड़ रही है, इसका शुभ महूर्त, पारण समय, शुभ योग और सटीक पूजन विधि आईए जानते हैं...
वैदिक पंचांग के मुताबिक, एकादशी तिथि 26 नवंबर को प्रात: काल 1 बजकर 01 मिनट से शुरू होगी और 27 नवंबर की प्रात: 03 बजकर 47 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा। हिंदू धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना होती है। ऐसे में उत्पन्ना एकादशी 26 नवंबर को मनाई जाएगी। इसका पारण 27 नवंबर को किया जाएगा। व्रत का पारण 27 नवंबर बुधवार को दोपहर में 1 बजकर 12 मिनट से 3 बजकर 18 मिनट के बीच कभी भी कर सकते हैं।
ज्योतिष के अनुसार, एकादशी पर सबसे पहले प्रीति योग बन रहा है। इसके बाद आयुष्मान योग और शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है। इनमें लक्ष्मी नारायण जी की पूजा-आराधना करने का अलग ही महत्व है। इन योगों में की गई पूजा से श्रीहरि भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। घर-परिवार में सुख, समृद्धि और खुशियों का वरदान देते हैं।
हिंदू धर्म में एकादशी के त्योहार का खास महत्व होता है। इस शुभ अवसर पर घर और मंदिरों में भगवान नारायण और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन व्रत भी रखा जाता है।
Method of Puja on Utpanna Ekadashi उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि- उत्पन्ना एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। भगवान विष्णु की पूजा में घी का दीपक जलाएं, तुलसी पूजन करें। भगवान विष्णु को पीले रंग की मिठाई और केसर वाले दूध का भोग लगाएं। इस दिन भजन-कीर्तन करें। दक्षिणावर्ती शंख में गंगा जल भरकर श्रीहरि का अभिषेक करें। अभिषेक के दौरान पीतांबरी वस्त्र ही धारण करें।