काशी में इस स्थान पर होती है भगवान शिव के अलावा देवी दुर्गा की पूजा

punjabkesari.in Thursday, Feb 13, 2020 - 11:40 AM (IST)

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काशी का नाम सुनते ही सबके मन में भगवान शिव का ध्यान आता है। काशी, भगवान शिव के नाम से ये धाम पूरी दुनिया में विख्यात है। बहुत से लोग यहां अपनी इच्छाएं लेकर भगवान के दर पर आते हैं और मान्यताओं के अनुसार यहां आने वाले की हर इच्छा पूर्ण होती है, लेकिन क्या आप में से कोई ये जानता है कि काशी में केवल भोलेनाथ का ही नहीं बल्कि देवी दुर्गा का भी स्थान है। अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको उसी के बारे में विस्तार से बताते हैं।  
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काशी में मां दुर्गा का दिव्य और पुरातन मंदिर है, जिसका उल्लेख काशी खंड में भी देखने को मिलता है। लाल पत्थरों से बने इस दिव्य मंदिर के एक तरह दुर्गा कुंड भी है। इस मंदिर में माता के कई स्वरूपों का दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है। कहा जाता है कि मंदिर परिसर में जाने वाले भक्त मां की प्रतिमा को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। मंदिर में एक अलग तरह की सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह महसूस होता है। बताया जाता है कि मां का यह मंदिर काशी के पुरातन मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण साल 1760 में बंगाल की रानी भवानी ने कराया था। उस समय मंदिर निर्माण में 50 हजार रुपए की लागत आई थी। बता दें कि मंदिर में माता दुर्गा, यंत्र के रूप में विराजमान हैं। साथ ही मंदिर में बाबा भैरोनाथ, देवी सरस्वती, लक्ष्मी और काली की मूर्तियां भी अलग-अलग स्थापित हैं। इसके साथ ही मंदिर की एक बात भी है कि यहां माता दुर्गा के दर्शन करने के बाद, मंदिर के पुजारी बाबा के दर्शन करना अनिवार्य होता है, तभी वहीं की गई पूजा सफल मानी जाती है। 
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इस भव्य मंदिर में एक तरह दुर्गा कुंड भी है। इस कुंड से जुड़ी एक अद्भुद कहानी बताई जाती है कि काशी नरेश राजा सुबाहू ने अपने पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर की घोषणा की थी। स्वयंवर से पहले सुबाहू की पुत्री को सपने में राजकुमार सुदर्शन के संग विवाह होते दिखा। राजकुमारी ने यह बात अपने पिता राजा सुबाहू को बताया। काशी नरेश ने जब यह बात स्वयंवर में आए राजा-महाराजाओं को बताया तो सभी राजा राजकुमार सुदर्शन के खिलाफ हो गए और युद्ध की चुनौती दी। राजकुमार ने युद्ध से पहले मां भगवती की आराधना की और विजय होने का आशीर्वाद मांगा। कहा जाता है युद्ध के दौरान मां भगवती ने राजकुमार के सभी विरोधियों का वध कर डाला। युद्ध में इतना रक्तपात हुआ कि वहां रक्त का कुंड बन गया, जो आज के समय में  दुर्गा कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद राजकुमार सुदर्शन का विवाह राजकुमारी के साथ हुआ।
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पौराणिक मान्यता है कि जहां माता स्वयं प्रकट होती हैं, वहां मूर्ति स्थापित नहीं की जाती। ऐसे मंदिरों में केवल चिन्ह की पूजा की जाती है। दुर्गा मंदिर भी उन्ही श्रेणियों में आता है। यहां माता के मुखौटे और चरण पादुका की पूजा की जाती है। 


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