Durga bhabhi birthday anniversary: गुमनामी के अंधेरे में गुम हुई आयरन लेडी दुर्गा भाभी के साहस की कहानी, आप भी पढ़ें
punjabkesari.in Monday, Oct 07, 2024 - 03:06 PM (IST)
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Durga bhabhi birthday anniversary: भारत के स्वतंत्रता के संघर्ष में नारी शक्ति का विशेष योगदान रहा है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना अंग्रेजों से लड़ने में सहयोग किया। इन बहादुर महिलाओं में क्रांतिकारी दुर्गावती भी शामिल हैं, जिन्हें सभी दुर्गा भाभी और भारत की ‘आयरन लेडी’ के नाम से जानते हैं।
दुर्गा भाभी स्वतंत्रता सेनानियों के कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं। वह अंग्रेजों से लोहा लेने जा रहे देश के सपूतों को टीका लगाकर विजय पथ पर भी भेजती थीं। दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर, 1907 को उत्तर प्रदेश के शहजादपुर ग्राम अब कौशाम्बी जिला में पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे और इनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार।
10 वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण वोहरा के साथ हो गया। इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें राय साहब का खिताब दिया था। राय साहब का पुत्र होने के बावजूद भगवती चरण वोहरा देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराना चाहते थे। वह क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव थे। 1920 में पिता की मृत्यु के पश्चात भगवती चरण वोहरा खुलकर क्रांति में आ गए और दुर्गा भाभी ने भी उनका पूरा सहयोग किया। 1923 में दुर्गा भाभी ने प्रभाकर की डिग्री हासिल की। मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने संयुक्त रूप से ‘नौजवान भारत सभा’ का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की।
भगत सिंह व भगवती चरण वोहरा सहित सभा के अन्य सदस्यों ने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए। इनका घर क्रांतिकारियों का आश्रय स्थल था इसलिए सभी क्रांतिकारी इन्हें ‘भाभी’ कहने लगे और इनका यही नाम प्रसिद्ध हो गया। 1927 में लाला लाजपत राय जी की मौत का बदला लेने के लिए लाहौर में बुलाई गई बैठक की अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने की थी। सांडर्स की हत्या के 2 दिन बाद राजगुरु ने दुर्गा भाभी से मदद मांगी और वह तैयार हो गई। हर तरफ पुलिस का पहरा था, ऐसे में दुर्गा भाभी ने वेश बदल कर भगत सिंह की पत्नी बन उन्हें लाहौर से निकालने में कलकत्ता मेल से यात्रा कर मदद की।
दो फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट की टिकटें लेकर भगत सिंह और दुर्गा मियां-बीवी की तरह बैठ गए और सर्वेन्ट्स कम्पार्टमेंट में राजगुरु बैठ गए। इसी ट्रेन में एक डिब्बे में चंद्रशेखर आजाद भी थे, जो तीर्थयात्रियों के ग्रुप में शामिल होकर रामायण की चौपाइयां गाते हुए सफर के साथ-साथ इनकी सुरक्षा पर ध्यान दे रहे थे। इनके पति भगवतीचरण वोहरा रावी नदी के तट पर लाहौर में बम का परीक्षण कर रहे थे। 28 मई, 1930 को अचानक बम फट गया और वह शहीद हो गए। दुर्गा भाभी को बड़ा झटका लगा।
साथी क्रांतिकारियों के एक-एक कर शहीद हो जाने के बाद दुर्गा भाभी एकदम अकेली पड़ गई। वह अपने 5 वर्षीय पुत्र शचींद्र को शिक्षा दिलाने की व्यवस्था करने के उद्देश्य से साहस कर दिल्ली, लाहौर, मद्रास होते हुए गाजियाबाद चली आई और एक आम नागरिक के रूप में गुमनामी में रहना शुरू कर दिया। मीडिया, सत्ताधीशों और लोगों को दुर्गा भाभी की आखिरी खबर 15 अक्टूबर, 1999 के दिन मिली, जब गाजियाबाद के एक फ्लैट में उनकी मौत हो गई। तब वह 92 साल की थीं। सभी की पहली प्रतिक्रिया यही थी कि क्या वह अब तक जिंदा थीं ?