KundliTv- क्या आप भी खाली हाथ जाते हैं भगवान के घर
punjabkesari.in Wednesday, Jul 18, 2018 - 02:22 PM (IST)
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जब भी कभी भगवान को कुछ अर्पित करें तो प्रेम से करना चाहिए। तभी भगवान स्वीकार करते हैं। हम कभी भी उन्हें चीज़ें दान नहीं करते हमेशा अर्पित ही करते हैं। क्योकि दान केवल एक छोटी सी चीज़ है जो जरुरत मंद लोगों को दी जाती है। प्रभु तो सर्वशक्तिमान है उन्हें हमारी नहीं हमें उनकी जरुरत होती है।
तुलसीदास जी ने अयोध्या कांड के अंत में लिखा है, ‘नित पूजत प्रभु पांवरी’ अर्थात भरत जी भगवान राम की चरण पादुका का निज पूजन करते है। सिंहासन पर राजा के रुप में उनका सम्मान करते हैं, उनकी आज्ञा लेते हैं। इसके आगे लिखते है ‘प्रीति न हृदयं समाति।’ जैसे नदी अपने तटों को लांघ जाती है, उछाल लेकर तटों से बाहर आ जाती है, अब तट नहीं रह पाए, तट सामर्थ्यहीन हो गए, वैसे ही प्रेम उमड़ना चाहिए और लगे कि आपके संभालने में नहीं आ रहा है।
ईश्वर को हम कुछ नहीं दे सकते क्योंकि वह खुद ही सर्वसाधन संपन्न है। वह पूरे ब्रह्मांड को चलाने वाले है और वे ही हमारे कर्ता-धरता है। अगर प्रेम की भावना से उनको कुछ प्रदान किया जाए तो वह कभी अस्वीकार नहीं करते। भगवान को तो भक्त वत्सल भी कहा गया है। तो भला हम कौन होते हैं उन्हें कुछ अर्पित करने वाले। पत्ता चाहे कोई भी हो तुलसी, बेल्व पत्र, चाहे कोई ओर लेकिन ये ध्यान रखें यह सब भगवान की बनी चाज़ें ही है।
हमारा मकसद यहीं होना चाहिए कि जब भी हम भगवान के घर जाएं तो कभी खाली हाथ न जाएं। क्योंकि भगवान तो केवल प्रेम-भाव के भूखे होते हैं।
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