Diwali 2021: ‘दीपावली’ हो तो ऐसी
punjabkesari.in Thursday, Nov 04, 2021 - 10:09 AM (IST)

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Diwali 2021: इस बार दीपावली में इलैक्ट्रिक लाइट्स का प्रयोग करने की बजाय मिट्टी के दीयों का प्रयोग कर घर को रोशन करें। हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मिट्टी के दीयों से न केवल पर्यावरण को नुक्सान होने से बचाव होगा। साथ ही कुम्हार और छोटे व्यापारियों को आर्थिक मदद भी मिलेगी। इसके अलावा ‘लोकल को वोकल’ करने का अवसर भी मिलेगा। मिट्टी के दीयों के प्रयोग से बिजली की भी बचत होगी।
बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए हमें पूजा करने के लिए ईको-फ्रैंडली मूर्तियों का ही प्रयोग करना चाहिए। मिट्टी से बनी मूर्तियां पर्यावरण को नुक्सान नहीं पहुंचातीं और समय के साथ मिट्टी में पूरी तरह मिल जाती हैं। वहीं प्लास्टर ऑफ पैरिस की मूर्तियां नष्ट नहीं होती हैं जिससे न केवल पर्यावरण को नुक्सान पहुंचता है बल्कि इन्हें जहां-तहां फैंके जाने से भावना को भी ठेस पहुंचती है। पूजन के लिए बाजार में लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की ईको-फ्रैंडली मूर्तियां आसानी से मिल जाती हैं। महाराष्ट्र में गणेश उत्सव और कोलकाता में दुर्गा उत्सव के दौरान मिट्टी की बनी प्रतिमाओं का चलन है।
दीपावली में घर में रंगोली बनाना शुभ माना जाता है इसलिए लगभग हर घर में रंगोली बनाई जाती है। रंगोली बनाने के लिए कई तरह के रंगों का प्रयोग किया जाता है। ये रंग ज्यादातर कैमिकल वाले होते हैं।
ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इस दीपावली में ऐसे रंगों से दूरी बनाएं और इनकी जगह नैचुरल कलर्स खरीदकर उनसे रंगोली बनाएं। इस दीवाली पर आप खाने की बर्बादी को कम करने में मदद करके भी पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं और गरीब बच्चों व परिवारों को मिठाइयां व कपड़े बांट सकते हैं। यह न केवल आपकी दीपावली को खास बना देगा, बल्कि आसपास के माहौल को भी खुशनुमा बना देगा।
दुकानदार और खरीददार अभी भी प्लास्टिक के बैग का इस्तेमाल कर रहे हैं। प्लास्टिक मिट्टी के उपजाऊपन को नुक्सान पहुंचाता है और यह आसानी से नष्ट नहीं होता है। पर्यावरण संरक्षण में छोटा-सा योगदान देते हुए खरीददार कपड़े के या जूट के बने बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं।
प्राचीन समय से ही भारतीय वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों को प्रकृति संरक्षण और मानव के स्वभाव की गहरी जानकारी थी। वे जानते थे कि मानव अपने क्षणिक लाभ के लिए कई मौकों पर गंभीर भूल करके अपना ही भारी नुक्सान कर सकता है इसलिए उन्होंने प्रकृति के साथ मानव के संबंध विकसित कर दिए ताकि मनुष्य को प्रकृति को गम्भीर क्षति पहुंचाने से रोका जा सके।
यही कारण है कि प्राचीन काल से ही भारत में प्रकृति के साथ संतुलन साधकर चलने का महत्वपूर्ण संस्कार है। त्योहार हमारी समृद्धि एवं सनातन संस्कृति के श्रेष्ठ प्रतीक हैं। हमारे त्योहारों में पर्यावरण सरंक्षण का संदेश छिपा रहता है। ये हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम त्योहारों पर पर्यावरण का विशेष ध्यान रखें।
दीपावली पर मिट्टी से बने दीपक को तेल से जलाएं। पटाखे, कैमिकल युक्त चीजों से दूर रहें। पर्यावरण के संरक्षण के लिए ईको-फ्रैंडली दीपावली मनाने का संकल्प लें।