Dhumavati Jayanti: इस दिन मनाई जाएगी धूमावती जयंती, जानें तिथि और पूजा विधि
punjabkesari.in Tuesday, Jun 11, 2024 - 08:58 AM (IST)
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Dhumavati Jayanti 2024: हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को धूमावती जयंती का त्योहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को धूमावती महाविद्या जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस साल यह त्योहार 14 जून 2024, शुक्रवार को मनाया जाएगा। माना जाता है कि इस दिन देवी धूमावती की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और मन की हर मुराद पूरी होती है। साथ ही जीवन में आने वाली हर समस्या से छुटकारा मिलता है। तो आइए जानते हैं धूमावती जयंती कब मनाई जाएगी और पूजा विधि के बारे में-
Dhumavati jayanti Date माता धूमावती जयंती तिथि
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन धूमावती जयंती बहुत ही धूम-धाम से मनाई जाती है। इस बार धूमावती जयंती 14 जून को मनाई जाएगी।
Dhumavati Jayanti 2024 Puja Vidhi धूमावती जयंती 2024 पूजा विधि
धूमावती जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें।
जिन लोगों को व्रत रखना है, वो मां के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
एक वेदी पर मां की मूर्ति स्थापित कर दें।
फिर देवी का पंचामृत, गंगाजल और शुद्ध जल से अभिषेक करें।
अब मां को कुमकुम का तिलक लगाएं और शृंगार का सामान अर्पित करें।
इसके बाद मां को धूपबत्ती, फूल, चावल और सिंदूर आदि चढ़ाएं।
अब मां के समक्ष घी का दीपक जलाएं और मां के वैदिक मंत्रों का जाप करें।
आरती के साथ पूजा का समापन करें।
धूमावती पूजा मंत्र
ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्॥
धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥
धूमावती देवी की चमत्कारी स्तुति
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा, विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा, काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा, सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता, प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा, क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा
॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥
धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥1॥
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥2॥
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥3॥
॥ श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम् ॥
॥ धूमावती कवचम् ॥
श्रीपार्वत्युवाच
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया ।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे ॥1॥
श्रीभैरव उवाच
शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम् ॥2॥
ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिनः ।
योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावतः ॥3॥
ॐ अस्य श्री धूमावती कवचस्य
पिप्पलाद ऋषिः निवृत छन्दः,श्री धूमावती देवता, धूं बीजं,स्वाहा शक्तिः, धूमावती कीलकं, शत्रुहनने पाठे विनियोगः॥
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।
धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु ॥1॥
दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिं में मलिनाम्बरा ।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी ॥2॥
मुखं में पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥3॥
चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥4॥
प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ॥5॥
सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।
इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम् ॥6॥
न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः ।।7॥
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत् । 7.1।
॥ इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं सम्पूर्णम् ॥