इन दो प्रसंगों में छिपा है ‘मोक्ष’ का मार्ग
punjabkesari.in Wednesday, Jun 29, 2022 - 12:15 PM (IST)
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श्री रामकृष्ण परमहंस मां काली के मंदिर में झाड़ू लगा रहे थे कि एक युवक उनके चरण स्पर्श कर नीचे बैठ गया।
‘‘बताओ क्या चाहते हो?’’
उन्होंने पूछा।
‘‘महाराज मुझे दीक्षा दीजिए मैं संन्यास लेना चाहता हूं।’’ उसने उनसे कहा।
‘‘क्या तुम्हारे परिवार में कोई नहीं है?’’ उन्होंने पूछा।
‘‘बस एक वृद्ध मां है, महाराज।’’ युवक ने उत्तर दिया।
परमहंस ने पूछा, ‘‘फिर मां को अकेला छोड़ कर संन्यासी क्यों बनना चाहते हो?’’
‘‘मैं इस संसार के मोह को त्यागकर मोक्ष चाहता हूं।’’ युवक ने पुन: कहा।
श्री रामकृष्ण परमहंस ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘बेटा अपने माता-पिता को असहाय छोड़ने वाले को मोक्ष कैसे मिल सकता है? बूढ़ी मां की सेवा तथा उसके आशीर्वाद से ही तुम्हारा मानव जीवन सार्थक होगा। उसे अकेली, भूखा मरने को छोड़ देने से तुम्हें मोक्ष नहीं, नरक मिलेगा।’’
उनकी ये बातें सुन कर युवक की आंखें खुल गईं और वह उसी समय अपनी मां की सेवा की प्रेरणा लेकर वहां से वापस घर लौट आया।
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'दयालु' संत
एक संत नौका में सवार होकर गंगा पार कर रहे थे। मल्लाह नशे में धुत्त था। नौका सही ढंग से नहीं चला पा रहा था। संत ने उसे समझाया, ‘‘भैया नशा करके नौका नहीं चलानी चाहिए। नशा शरीर व बुद्धि का नाश करता है। किसी दिन नशे में तुम नौका को ही डुबो दोगे।’’
नाविक दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने संत की बांह पकड़ी और बोला, ‘‘बाबा उपदेश मत दे, अन्यथा तुझे इस समय गंगा में डुबो दूंगा।’’ उसने संत का खूब अपमान किया।
उसी समय आकाशवाणी हुई, ‘‘संत के अपमान के दंडस्वरूप नौका गंगा में डूबने वाली है।’’
यह सुनते ही संत ने भगवान से प्रार्थना की, ‘‘भगवान यह बेचारा नादान और नशे का व्यस्नी है। यह नौका ही इसके परिवार के जीवनयापन का साधन है। इसके डूबने से इसके बाल-बच्चे भूखे मर जाएंगे। इसे क्षमा करें।’’
पुन: आकाशवाणी हुई, ‘‘फिर आप ही बताएं कि आप जैसे संत का अपमान करने के अपराध में इसको कैसा उचित दंड दिया जाए?’’
संत बोल उठे, ‘‘प्रभु आप तो पूर्ण सक्षम, दयावान तथा प्रत्येक जीव का कल्याण करने वाले हैं। क्यों नहीं, इसके हृदय में ज्ञान का प्रकाश भर देते जिससे इसकी बुद्धि ठीक हो जाए। यह नशा व क्रोध का त्याग कर अच्छा इंसान बन जाए।’’
नौका चालक अपमान के बावजूद उसका भला चाहने वाले संत की वाणी सुनकर पानी-पानी हो गया।
तब तक नौका गंगा के दूसरे तट पर पहुंच चुकी थी। प्रभु की कृपा से नाविक क्रोध से मुक्ति पाकर संत से क्षमा मांगने लगा। -शिव कुमार गोयल
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