Dharmik Katha: जीवन में ‘अहंकार’ का अंत करना बेहद जरूरी
punjabkesari.in Wednesday, Sep 01, 2021 - 11:58 AM (IST)
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अहमदाबाद का प्राचीन नाम कर्णावती था। एक वक्त वहां का राजा अहमद शाह था। राज्य में साबरमती नदी के किनारे माणिक नाथ नामक एक सिद्ध पुरुष का आश्रम था। एक दिन घूमते हुए राजा उस आश्रम में आए। उन्हें वह जगह बहुत पसंद आई। उन्होंने मंत्री को आदेश दिया कि उनके लिए वहां एक आरामगृह बनाया जाए।
जल्द ही माणिक नाथ के आश्रम के पास निर्माण कार्य शुरू हो गया। इस पर उन्हें गुस्सा आया। उन्होंने कहा, ‘‘राजा की इतनी हि मत कि वह बिना मुझसे पूछे आश्रम परिसर में दखल दें? उन्हें मेरी ताकत का पता नहीं है।’’
मजदूर दिन भर दीवार बनाने का काम करते और रात को वह मंत्र बल से दीवार गिरा देते। कई दिनों तक यह सिलसिला जारी रहा। राजा को जब पता चला तो वह परेशान हो गए। उन्हें चिंतित देख कर एक मंत्री ने कहा, ‘‘आप चिंता न करें। मैं इसका हल खोज लूंगा।’’
मंत्री माणिक नाथ के आश्रम में गए और बोले, ‘‘गुरु जी मैं आपकी सेवा करना चाहता हूं।’’
माणिक नाथ ने उन्हें अपने आश्रम में रख लिया। कुछ दिन बाद मंत्री ने उनसे कहा, ‘‘गुरुवर मैंने सुना है कि आपने कई सिद्धियां हासिल कर रखी हैं। कोई चमत्कार हो तो दिखाइए।’’
बार-बार कहने पर माणिक नाथ ने अपना शरीर छोटा किया और एक लोटे में प्रविष्ट हो गए। मंत्री यही तो चाहता था। उसने तुरंत लोटे को पत्थर से ढंक दिया। मंत्रोच्चार करते-करते योगी थक गए लेकिन वह लोटे से बाहर नहीं आ सके।
उसी दौरान आकाशवाणी हुई। योगी के गुरु महाराज कह रहे थे कि माणिक अब तुम्हारे सिद्धि मंत्र का असर खत्म हो गया है। तुम्हारे अंदर अहंकार पैदा हो गया है। तु हें परोपकार के लिए सिद्धियां मिली थीं पर तुमने प्रजा की भलाई के लिए नहीं बल्कि अहंकार व राजा के काम में बाधा डालने में अपनी सिद्धियों का उपयोग किया।
यह सुन कर माणिक नाथ ने पश्चाताप करते हुए गुरु से क्षमा मांगी और प्राण त्याग दिए।
बाद में अहमद शाह के नाम पर कर्णावती शहर का नाम अहमदाबाद पड़ा और उसमें माणिक नाथ के नाम पर एक चौराहे का नाम माणिक चौक रखा गया।
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