Devki Nandan Thakur Food Rules: देवकी नंदन ठाकुर ने बताया, बहुत से लोग भोजन करते समय करते हैं ये गंभीर गलतियां
punjabkesari.in Friday, Nov 21, 2025 - 12:28 PM (IST)
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Devki Nandan Thakur Food Rules: हिंदू शास्त्रों में भोजन को ‘ईश्वर प्रसाद’ के समान माना गया है। इसलिए भोजन करने के समय की सावधानियां केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु देवकीनंदन ठाकुर जी अक्सर अपने प्रवचनों में बताते हैं कि भोजन करते समय की गई छोटी-छोटी गलतियां भी भोजन के पूर्ण फल को कम कर देती हैं। यहां पढ़िए देवकीनंदन ठाकुर जी द्वारा बताए प्रमुख नियम और उनका महत्व—

हाथ-पैर न धोकर भोजन करना — सबसे बड़ी भूल
देवकीनंदन ठाकुर जी कहते हैं कि भोजन से पहले हाथ-पैर धोना सिर्फ स्वच्छता नहीं, बल्कि एक शुद्धिकरण प्रक्रिया है। हाथ-पैर स्वच्छ होने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और भोजन पवित्र भाव से ग्रहण किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार अशुद्ध अवस्था में खाया गया भोजन शरीर और मन दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
खुले में भोजन क्यों नहीं करना चाहिए?
ठाकुर जी बताते हैं कि भोजन हमेशा बंद स्थान में बैठकर ही करना चाहिए। खुले वातावरण में कई प्रकार के जीव, कीट, पक्षी आदि भोजन को दूषित कर सकते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि आकाश में उड़ते जीवों का विश (हानिकारक अंश) भोजन में पड़ सकता है, जिससे उसकी पवित्रता नष्ट होती है। इसीलिए सुरक्षित, स्वच्छ और शांत जगह में भोजन करना सबसे श्रेष्ठ माना गया है।

क्रोध और लोभ के साथ भोजन न करें
भोजन का स्वाद केवल जीभ से नहीं, मन के भावों से जुड़ा होता है। ठाकुर जी के अनुसार क्रोध, ईर्ष्या, लोभ या तनाव की अवस्था में भोजन किया जाए तो भोजन का आध्यात्मिक व ऊर्जात्मक फल नहीं मिलता। शांत मन, कृतज्ञता और सम्मान के साथ लिया गया भोजन ही शरीर का सच्चा पोषण करता है।
भोजन करते समय पांचों उंगलियों का उपयोग
हमारे ऋषियों ने भोजन को एक यज्ञ माना है। इसीलिए पांचों उंगलियों का उपयोग करना पंचतत्वों का सम्मान माना गया है। खासतौर पर चावल खाते समय उंगलियों का पूर्ण उपयोग करने से भोजन अधिक पाचनशील और ऊर्जा-दायी होता है।

छोटा निवाला और स्वच्छता का ध्यान
देवकीनंदन ठाकुर जी बताते हैं कि भोजन हमेशा छोटे निवाले में लेना चाहिए, ताकि भोजन मुंह से न गिरे। जो व्यक्ति भोजन गिराते हुए खाता है, उसे भोजन का पूर्ण फल नहीं मिलता। यह न केवल असंस्कारी माना जाता है, बल्कि अशुद्धता भी बढ़ाता है।
भोजन करना सिर्फ भूख मिटाना नहीं, बल्कि यह एक पवित्र प्रक्रिया है जिसे शास्त्रों ने ‘प्राण ऊर्जा ग्रहण करना’ कहा है। यदि हम देवकीनंदन ठाकुर जी के बताए इन सरल नियमों का पालन करें तो भोजन स्वादिष्ट, शुद्ध और फलदायी बन जाता है।

