चतुर्थ रूप-माता कूष्मांडा 'दीर्घायु, यश, बल करे प्रदान...'

punjabkesari.in Wednesday, Oct 02, 2019 - 09:59 AM (IST)

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आज दिन बुधवार आश्विन मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नवरात्रि का चौथा दिन है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना होती है। पुराणों व ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि उपासना में इनकी आराधना का अत्यधिक महत्व है। आईए जानते हैं पापनाशिनी मैया चंद्रघंटा का स्तुति गान-
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नहीं अस्तित्व था जब धरती का,
मैया कूष्मांडा ने अवतार लिया!
की रचना समूचे सौरमंडल की,
नक्षत्रों का रूप साकार किया!!
नहीं अस्तित्व था...रूप साकार किया!!
सूरज-सा तेज तुझमें समाया,
सूर्यलोक में तू करती निवास!
करे अरदास, इल्तजा दिल से,
करती पूर्ण मन की हर आस!!
अष्ट भुजाओं वाली मैया करे,
पीले-पीले शेर की सवारी!
अति लुभावनी छवि मां तेरी,
सब श्रद्धालु जाएं तुझपे वारी!!
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करें निष्ठा से पूजा-आरती, 
मां ने भक्तों को भव पार किया।
नहीं अस्तित्व था...रूप साकार किया!!
वागेश्वरी, भद्रकाली, आदिशक्ति,
हर रूप में तू खुशहाली भरे!
बढ़े इन्सां सदा आगे ही आगे,
न किसी मुसीबत से वो डरे!!
तन का हर रोग हरने वाली, 
दीर्घायु, यश, बल करे प्रदान!
होती प्रसन्न जिस भक्त पर,
देती परम सुखों का वरदान!!
बांटा प्यार जग में जिसने भी,
हर हाल में बेड़ा पार किया!!
नहीं अस्तित्व था...रूप साकार किया!!
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सुख-समृद्धि, धन, वैभव, उन्नति,
सब तेरे द्वारे से मिलते हैं!
छंट जाता हर इक अंधियारा,
फूल बहारों के खिलते हैं!!
कहे  'झिलमिल कविराय अम्बालवी,
तेरे गीत, भजन दुनिया गाए!
भटके हुओं को दिखलाए राह,
तीनों लोकों के दर्शन कराए!!
बन जाती जीवन भर का मनमीत,
जिसने जां को निसार किया।
नहीं अस्तित्व था...रूप साकार किया!!

नहीं अस्तित्व था जब धरती का,
मैया कूष्मांडा ने अवतार लिया!
की रचना समूचे सौरमंडल की,
नक्षत्रों का रूप साकार किया!!
नहीं अस्तित्व था...रूप साकार किया!!
सूरज-सा तेज तुझमें समाया,
सूर्यलोक में तू करती निवास!
करे अरदास, इल्तजा दिल से,
करती पूर्ण मन की हर आस!!
अष्ट भुजाओं वाली मैया करे,
पीले-पीले शेर की सवारी!
अति लुभावनी छवि मां तेरी,
सब श्रद्धालु जाएं तुझपे वारी!!
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करें निष्ठा से पूजा-आरती, 
मां ने भक्तों को भव पार किया।
नहीं अस्तित्व था...रूप साकार किया!!
वागेश्वरी, भद्रकाली, आदिशक्ति,
हर रूप में तू खुशहाली भरे!
बढ़े इन्सां सदा आगे ही आगे,
न किसी मुसीबत से वो डरे!!
तन का हर रोग हरने वाली, 
दीर्घायु, यश, बल करे प्रदान!
होती प्रसन्न जिस भक्त पर,
देती परम सुखों का वरदान!!
बांटा प्यार जग में जिसने भी,
हर हाल में बेड़ा पार किया!!
नहीं अस्तित्व था...रूप साकार किया!!

सुख-समृद्धि, धन, वैभव, उन्नति,
सब तेरे द्वारे से मिलते हैं!
छंट जाता हर इक अंधियारा,
फूल बहारों के खिलते हैं!!
कहे  'झिलमिल कविराय अम्बालवी,
तेरे गीत, भजन दुनिया गाए!
भटके हुओं को दिखलाए राह,
तीनों लोकों के दर्शन कराए!!
बन जाती जीवन भर का मनमीत,
जिसने जां को निसार किया।
नहीं अस्तित्व था...रूप साकार किया!!


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