Dev Vrat Mahesh Rekhe: 19 वर्ष की उम्र में मिली वेदमूर्ति की महान उपाधि, जानें क्यों देवव्रत की उपलब्धि है असाधारण ?

punjabkesari.in Friday, Dec 05, 2025 - 07:30 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Dev Vrat Mahesh Rekhe: दंडक्रम पारायण को पूरा करने वाले साधक को वेदमूर्ति की सम्मानजनक उपाधि दी जाती है। यह साधना बेहद कठिन मानी जाती है क्योंकि इसमें 1975 मंत्रों को क्रम बदलकर सीधे और उल्टे दोनों तरीकों से याद रखना और पढ़ पाना होता है। यह केवल स्मरण शक्ति ही नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता की भी गहन परीक्षा है। इस अभ्यास से व्यक्ति की स्मरण शक्ति और मनोबल दोनों का विकास होता है। साथ ही यह प्रक्रिया वेदों की शुद्धता और उनके मौलिक रूप को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रूप से पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाती है।

साधक को लगातार 50 दिनों तक बिना किसी रुकावट के यह पारायण करना होता है, जो एक प्रकार की तपस्या के समान है। इसलिए दंडक्रम को वेद-पाठ की सर्वोच्च विधियों में से एक माना जाता है। इसमें हजारों वैदिक ऋचाओं और पवित्र ध्वनियों का एक भी त्रुटि के बिना उच्चारण अनिवार्य होता है। दंडक्रम पारायण के दौरान मंत्रों का कुल पाठ दो लाख से भी अधिक बार हो जाता है।

ऐसी ही कठिन साधना को पूरा कर महाराष्ट्र के अहिल्या नगर के 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने असाधारण उपलब्धि हासिल की। उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा का दंडक्रम पारायण पूरे 50 दिनों तक, वह भी विशेष शैली में उल्टा और सीधा पढ़ते हुए पूरा किया। इस अलौकिक साधना के बाद उन्हें वेदमूर्ति की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनकी यह उपलब्धि इतनी विशिष्ट है कि इसकी तुलना केवल लगभग 200 वर्ष पूर्व नासिक के वेदमूर्ति नारायण शास्त्र देव से की जाती है।

वेदमूर्ति कौन होते हैं ?
वेदमूर्ति वह ज्ञानी होते हैं जिन्हें वेदों का गहन, विस्तृत और पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है। वे केवल ग्रंथों के पाठक नहीं, बल्कि वैदिक परंपरा और ज्ञान के सच्चे संरक्षक माने जाते हैं। देवव्रत की इस उपाधि ने यह सिद्ध कर दिया कि नई पीढ़ी में भी वैदिक साधना के प्रति अद्भुत निष्ठा और समर्पण मौजूद है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Prachi Sharma

Related News