दत्तात्रेय जयंती विशेष : कैसे देवी अनुसुइया बनी त्रिदेवों की माता

punjabkesari.in Friday, Dec 21, 2018 - 04:45 PM (IST)

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शनिवार, 22 दिसंबर को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के उपलक्ष्य में भगवान दत्तात्रेय जयंती पर्व मनाया जाएगा। दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु व महेश का त्रिदेव स्वरूप माना गया है। तीनों ईश्वरीय शक्तियों से समाहित दत्तात्रेय की आराधना परम फलदायी मानी गयी है। दत्तात्रेय में ईश्वर व गुरु दोनों रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें परब्रह्ममूर्ति व श्री-गुरु-देवदत्त भी कहते हैं। दत्तात्रेय के पिता ब्रह्मा के मानसपुत्र महर्षि अत्रि व इनकी माता सती अनुसूया कर्दम ऋषि की कन्या थीं।
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मार्कण्डेय पुराण, श्रीमद्भागवत व महाभारत के सभापर्व के अनुसार त्रिदेवियों सरस्वती, लक्ष्मी व पार्वती को अपने पतिव्रत्य पर बहुत गर्व हो गया। परमेश्वर ने त्रिदेवियों का अहंकार नष्ट करने के लिए लीला रची। एक दिन देवऋषि नारद ने त्रिदेवियों को जाकर कहा कि सती अनुसूइया के सामने आपका सतीत्व फ़ीका है। त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनुसूइया के पतिव्रत्य की परीक्षा लेने को कहा। तब ब्रह्मा, विष्णु व महेश साधु रूप में महर्षि अत्रि की अनुपस्थिति में उनके आश्रम गए। त्रिदेवों ने देवी अनुसूइया से निर्वस्त्र होकर भिक्षा देने को कहा। साधुओं का अपमान न हो इस डर से घबराई अनुसूइया ने पति का स्मरण कर कहा कि यदि मेरा पतिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु 6 मास के शिशु हो जाएं। इस पर त्रिदेव शिशु बनकर रोने लगे। तब अनुसूइया ने माता बनकर त्रिदेवों को स्तनपान कराया।
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जब त्रिदेव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो त्रिदेवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने त्रिदेवियों को सारी बात बताई। त्रिदेवियां ने अनुसूइया से क्षमा याचना की। तब अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में ला दिया। प्रसन्नचित्त त्रिदेवों ने देवी अनुसूइया को उनके गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। तब ब्रह्मा अंश से चंद्र, शंकर अंश से दुर्वासा व विष्णु अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
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भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में 24 गुरुओं से शिक्षा ली। दत्तात्रेय जी के अनुसार जिससे जितना-जितना गुण मिला है उनको उन गुणों का प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है, इस प्रकार उनके 24 गुरु थे। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी व भृंगी। दत्तात्रेय के प्रमुख तीन शिष्य थे। तीनों शिष्य राजा थे।
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दो यौद्धा जाति से थे तो एक असुर जाति से। तीन संप्रदाय अर्थात वैष्णव, शैव व शाक्त के संगम स्थल के रूप में भारतीय राज्य त्रिपुरा में उन्होंने शिक्षा-दीक्षा दी। मान्यतानुसार दत्तात्रेय ने परशुराम को श्री-विद्या-मंत्र प्रदान किया था। शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएं दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। नागार्जुन को रसायन की विद्या भी इन्हीं से ही प्राप्त हुई थी। गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुआ। भगवान दत्तात्रेय को गुरु वंश का प्रथम गुरु और योगी कहा गया है। भगवान दत्तात्रेय ही नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा के अग्रज माने गए हैं।
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पूजन विधि: घर की पूर्व दिशा में पूर्वमुखी होकर पीले वस्त्र पर भगवान दत्तात्रेय का चित्र स्थापित कर विधिवत षोडशोपचार पूजन करें। चित्र के समुख पानी वाला नारियल मिट्टी के घड़े के ऊपर रखकर चारों तरफ पत्ते लगाकर कलश स्थापित करें व चौमुखी दीपक उसके सामने प्रज्ज्वलित करें। गूगल की धूप करें, लाल-पीले फूल चढ़ाएं, केसर से तिलक करें, 4 मीठी रोटी व गुड़ चने का भोग लगाएं, दक्षिणा अर्पित करें। पीले रंग का आसन प्रयोग करते हुए चंदन की माला से इस विशिष्ट मंत्र का यथासंभव जाप करें। जप पूरा होने के बाद 4 मीठी रोटी कुत्ते को डालें व गुड़ चना गाय को खिलाएं।

दत्तात्रेय पूजन मंत्र: ॐ द्रां दत्तारे स्वाहा॥

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com
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