670th Birth Anniversary of Baba Lal Dayal: आज मनाई जाएगी करोड़ों परिवारों की आस्था के केंद्र बावा लाल दयाल जी की 670वीं जन्म जयंती
punjabkesari.in Friday, Jan 31, 2025 - 11:57 AM (IST)
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670th Birth Anniversary of Baba Lal Dayal: सन् 1355 ई. के माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को लाहौर स्थित कस्बे कसूर में पटवारी भोलामल के घर अवतरित होने वाले बावा लाल दयाल देश-विदेश में करोड़ों परिवारों की आस्था का केंद्र हैं। उन्होंने जहां बचपन में ही शास्त्रों का ज्ञान लिया, वहीं अपने गुरु चैतन्य देव से कई सिद्धियां भी प्राप्त कीं। इन्हें आध्यात्मिक गुण माता कृष्णा देवी से प्राप्त हुए।
यही बालक आगे चल कर परम सिद्ध, परम तपस्वी, ज्ञानी, योगीराज तथा परमहंस जैसी उपाधियों से अलंकृत हुआ। कहते हैं कि बावा लाल दयाल ने अपनी योग शक्ति के बल पर 300 वर्ष का सुदीर्घ जीवन प्राप्त किया। योग शक्ति के बल पर आप हर 100 साल बाद फिर से बाल रूप धारण कर लेते थे।
मुगल शासक शहंशाह के पुत्र दारा शिकोह और उस समय के अन्य मुगल शासकों के प्रसंगों में परमयोगी बावा लाल दयाल का जिक्र कई ऐतिहासिक किताबों में भी आता है। विद्वता, अलौकिक दिव्य दृष्टि तथा मुख पर तेज से प्रभावित हो दारा शिकोह ने एक बार आपसे लम्बा संवाद किया और विभिन्न गुणों को महसूस कर वह आपका शिष्य ही बन गया।
बचपन में एक बार गऊएं चराते-चराते महात्माओं की एक टोली से आपका मिलन हुआ। टोली के प्रमुख महात्मा अपने पैरों का चूल्हा बनाकर उस पर चावल बना रहे थे। बालक लाल ने ऐसा दृश्य देख महात्माओं के चरण स्पर्श किए।
उन्होंने चावलों के तीन दाने प्रसाद रूप में बालक लाल को दिए। प्रसाद ग्रहण करते ही हृदय और मस्तिष्क में अपूर्व ज्योति प्रज्वलित हुई और मोह-माया के तमाम बंधन छूट गए। परमात्मा मिलन की चाह लेकर बालक लाल अनजान दिशा की ओर चल पड़ा। उन्होंने बचपन में ही गुरमुखी के साथ-साथ फारसी, संस्कृत इत्यादि कई भाषाओं का ज्ञान तो प्राप्त किया ही वेद, उपनिषद् और रामायण जैसे ग्रंथ भी कंठस्थ कर लिए। पूरे भारत का भ्रमण कर अनेक तीर्थस्थलों के दर्शन किए और हरिद्वार, केदारनाथ धाम इत्यादि में तपस्या की। अफगानिस्तान और साथ लगते खाड़ी देशों व अन्य क्षेत्रों में भी गए।
भ्रमण के दौरान जब आप भारतीय पंजाब के जिला गुरदासपुर के कलानौर पहुंचे तो यहां से गुजरती नदी किनारे तपस्या करने लगे। यहीं आपने अपने भौतिक शरीर का कायाकल्प कर लिया और फिर से 16 वर्षीय बालक का रूप धारण किया। अपने शिष्य ध्यानदास को इन्होंने किसी शांतमय स्थान की तलाश में भेजा। ध्यानदास पास ही स्थित एक टीले पर इन्हें ले गया। यह स्थान बावा लाल दयाल जी को काफी पसंद आया और बाद में ध्यानपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने यहीं अपना डेरा बना लिया। ध्यानपुर धाम में ही सतगुरु बावा लाल दयाल विक्रमी सम्वत् 1712 में ब्रह्मलीन हुए, जहां इनकी समाधि भी बनी हुई है।
इस साल सतगुरु बावा लाल दयाल जी की 670वीं जयंती 31 जनवरी को देश-विदेश में मनाई जा रही है। इस संबंधी आयोजन सभी लालद्वारों में होंगे। मुख्य आयोजन श्री ध्यानपुरधाम में गद्दीनशीन महंत राम सुंदर दास जी की अध्यक्षता में होगा।
महंत राम सुंदर दास के सान्निध्य में ध्यानपुर धाम का हुआ अभूतपूर्व विकास सतगुरु बावा लाल दयाल की गद्दी पर 1 नवम्बर, 2001 को गद्दीनशीन हुए 15वें वर्तमान महंत श्री राम सुंदर दास जी ने इन 24-25 सालों में न केवल श्री ध्यानपुर धाम में अभूतपूर्व विकास करवाकर इसे भव्य स्वरूप दिया, बल्कि दिल्ली, हरिद्वार, वृंदावन और अन्य स्थानों पर भी सतगुरु बावा लाल दयाल के सेवकों हेतु अच्छी सुविधाओं का इंतजाम किया।