दमनक चतुर्थी व्रत कथा: जानें, कैसे कर्म कभी नहीं छोड़ते पीछा

punjabkesari.in Wednesday, Mar 21, 2018 - 09:31 AM (IST)

शास्त्रीय दृष्टिकोण से दमनक चतुर्थी व्रत से संबंधित एक कथा आती है। पुराणिक काल में एक राजा था, उनकी दो पत्नियां थी तथा दोनों रानियों से एक-एक पुत्र था। राजा के एक पुत्र का नाम गणेश और दूसरे का नाम दमनक था। दमनक जब भी अपने ननिहाल जाता, तब उसके मामा और मामियां उससे घर का काम करवाते और किसी काम में कमी रह जाने पर उसे पीटते भी थे। इसके विपरीत गणेश जब भी अपने ननिहाल में जाता, तब उसके ननिहाल में मामा और मामियां उसकी खूब खातिरदारी करते तदउपरांत जब दोनों भाई अपने घर वापिस आते तो दमनक ननिहाल से खाली हाथ ही आता जबकि गणेश अपनी ननिहाल से खूब मिठाई और सामान लाता । 


दमनक ननिहाल से लौटकर गुमसुम और चुपचाप रहता था इसके विपरीत गणेश अपने घर आकर अपनी ननिहाल की खूब तारीफ करता था । कुछ वर्षो बाद जब दोनों सौतेले भाई जवान हुए तो राजन ने दोनों का विवाह करवा दिया। दोनों सौतेले भाइयों की इक्कठी शादी हुई और दोनों की बहुएं आई। विवाह के बाद जब कभी दमनक अपने ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले बहाना बनाकर उसे घुड़साल में सुला देते और खुद आराम से सोते इसके विपरीत गणेश जब जब अपने ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले उसकी खूब आवभगत और खातिरदारी करते। दमनक जब कभी भी ससुराल से घर लौटता तो ख़ाली हाथ ही आता। जबकी गणेश जब ससुराल से घर आता, तब खूब सारा दान-दहेज लेकर आता। 


इन दोनों सौतेले भाइयों की हालत एक वृद्ध स्त्री देखती रहती थी । एक दिन शाम के वक्त भगवान शंकर और माता पार्वती संध्या फेरी लगाने और जगत की चिंता लेने के लिये निकले तो वह वृद्ध स्त्री हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ी हो गई और उसने दमनक तथा गणेश का किस्सा उनको बताया और पूछा कि ऐसा क्या कारण है कि दमनक को ननिहाल और ससुराल में अपमान मिलता है। जबकि गणेश को दोनों जगह पर खुशामद मिलती है। 


भगवान शंकर तो त्रिकालदर्शी हैं उन्होंने वृद्ध स्त्री से कहा,"गणेश ने तो अपने पूर्व जन्म में जो ननिहाल से मामा और मामी से लिया था उसे वह मामा और मामी की संतान को वापस कर आया था। ससुराल से जो मिला था, वह साले और सलहज की संतान को वापस कर आया था इसलिए उसकी इस जन्म में भी खूब खुशामद होती है, जबकि दमनक अपनी ननिहाल पक्ष से लेकर आता ज़रूर था लेकिन उनके घर कामकाज होने पर वापस नहीं देने जाता था और यही बात उसके साथ ससुराल से भी थी। वह ससुराल से लेकर तो खूब आता था, लेकिन उसने कभी उसे वापस नहीं दिया इसलिए इस जन्म में दमनक को अपमान मिलता है और खुशामद भी नहीं होती है। 


कथा का महात्म: कर्मो का कभी क्षय नहीं होता है, जिससे हमने ऋण लिया है उसे या उसकी संतान को लौटना ही पड़ता है, ऐसा शास्त्र कहते हैं के भाई से ऋण लेने पर भतीजों को लौटाना चाहिए, ननिहाल से लेने पर मामा को लौटाना चाहिए, ससुराल से लेने पर साले को लौटा देना चाहिए। जिससे जो भी लिया है, उसको लौटा देने पर ही कर्मो के ऋण चुकता होते हैं । 


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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