Chhath Puja: महापर्व छठ पूजा से मिलते हैं न केवल व्यक्तिगत लाभ बल्कि बढ़ती है समाज और प्रकृति की ऊर्जा
punjabkesari.in Thursday, Oct 23, 2025 - 04:17 PM (IST)
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Chhath Puja 2025: वर्ष 2025 में छठ पूजा को पुरानी मान्यताओं के अनुरूप ही मनाया जा रहा है। इस वर्ष विशेष रूप से घाटों, मंदिरों एवं लोक-समूहों में तैयारी जोरो-शोरो से की जा रही है। यहां बताई जा रही विधि का पालन करके इस व्रत-उत्सव को एक पूर्ण आध्यात्मिक अनुभव में बदल सकते हैं। छठ पूजा के माध्यम से हम सूर्य-उर्जा, छठी मैय्या की कृपा व परिवार-समृद्धि की कामना करते हैं। छठ पूजा को जानना व निभाना स्वयं के जीवन तथा समाज में सकारात्मक ऊर्जा स्थापित करने का मार्ग है। आप इस वर्ष छठ पूजा में श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ भाग लें। इससे न केवल व्यक्तिगत लाभ होगा, बल्कि सामाजिक समरसता भी बढ़ेगी।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ महापर्व मनाया जाता है। छठ पर्व भारत के कुछ कठिन पर्वों में से एक है जो 4 दिनों तक चलता है। इस महापर्व में 36 घंटे निर्जला व्रत रख सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। यह व्रत मनोकामना पूर्ति के लिए भी किया जाता है। महिलाओं के साथ पुरुष भी यह व्रत करते हैं। कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय होता है, इसके बाद दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन डूबते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। चौथे दिन उगते सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।

मान्यता के अनुसार, छठ पूजा और व्रत परिवार की खुशहाली, स्वास्थ्य और संपन्नता के लिए रखा जाता है। चार दिन के इस व्रत पूजन के कुछ नियम बेहद कठिन होते हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख 36 घंटे का निर्जला व्रत है। महापर्व में व्रती के लिए कुछ कठिन नियम हैं, जैसे छोटे बच्चों से दूर पूजा का सामान रखा जाता है ताकि बच्चे उसे छू नहीं सकें। जब तक पूजा पूर्ण नहीं हो जाती है तब तक बच्चों व अन्य लोगों को प्रसाद नहीं खिलाया जाता है।

छठ पूजा प्रकृति प्रेम करना भी सिखाता है
छठ महापर्व के अनुष्ठान के दौरान हरे कच्चे बांस की बहंगी, मिट्टी का चूल्हा, प्रकृति प्रदत फल, ईख सहित अन्य वस्तुओं के उपयोग का विधान है, जो आमजनों को प्रकृति की ओर लौट चलने के लिए प्रेरित करता है।

छठ पूजा और जीव-संरक्षण
छठ पूजा के अनुष्ठान के दौरान गाया जाने वाला पारंपरिक गीत केरवा जे फरेला घवध से ओहपर सुग्गा मंड़राय, सुगवा जे मरवो धनुख से सुग्गा जइहें मुरझाए..,रोवेली वियोग से, आदित्य होख ना सहाय.., जैसे गीत इस बात को दर्शाते हैं कि लोग पशु-पक्षियों के संरक्षण की याचना कर उनके अस्तित्व को कायम रखना चाहते हैं।

