छठ पर्व: इस विधि से चार दिन तक किया जाता है व्रत

punjabkesari.in Monday, Oct 23, 2017 - 02:29 PM (IST)

छठ षष्ठी का अपभ्रंश है। छठ पर्व एक वर्ष में दो बार चैत्र मास तथा कार्तिक मास में मनाने की परंपरा है लेकिन कार्तिक मास में मनाए जाने वाले छठ की रौनक तो देखते ही बनती है। दीपावली के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को चार दिवसीय इस व्रत की शुरूआत होती है। कल से यानि 24 अक्टूबर, मंगलवार को नहाय-खाए से होगा  छठ पर्व का आरंभ शुभ आरंभ। 25 अक्टूबर को खरना, 26 अक्टूबर को संध्याकालीन अर्घ्य और 27 अक्टूबर को प्रातःकालीन अर्घ्य उपरांत व्रत का विश्राम होगा।


चार दिवसीय इस पर्व की शुरूआत ‘नहाए खाए’ से होती है। इस दिन व्रतधारी नहाने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन प्रसाद में अरवा चावल, चने की दाल के साथ कद्दू मिला कर बना दलकद्दू तथा कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन से उपवास शुरू होता है इसे ‘खरना’ का दिन कहते हैं। इस दिन गुड़ में बनी खीर, घी लगी रोटी तथा केले को प्रसाद के रूप में चढ़ाने की परंपरा है। सारे दिन के उपवास के बाद सायं काल पूजा-अर्चना के पश्चात प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करने की परंपरा है।


तीसरा दिन व्रतधारी के लिए पूर्ण उपवास का दिन होता है। इसे बोलचाल की भाषा में संझकी अरग या संध्या अर्घ्य का दिन कहते हैं। इस दिन नदी या पोखर किनारे  सायंकाल डूबते हुए सूर्य की पूजा होती है। सभी प्रसाद को बांस से बने दौरा और सूप में सजा कर नदी या पोखर किनारे ले जाने की प्रथा है। प्रसाद के रूप में विभिन्न तरह के फल चढ़ाने की परम्परा है। इस दिन एक विशेष प्रकार का पकवान जो आटे को गुड़ या चीनी के साथ गूंथ कर फिर उसे घी में तलकर बनाया जाता है जिसे ‘ठेकुआ’ कहते हैं। इस पर्व पर इसका विशेष महत्व है तथा प्रसाद के रूप में इसे निश्चित रूप से चढ़ाया जाता है। बांस के सूप में सजे प्रसाद को सूर्य देवता के समक्ष अर्पित कर कच्चे दूध तथा जल से अर्घ्य देने की प्रथा है। यह उपवास का वह दिवस होता है जब व्रतधारी पानी भी ग्रहण नहीं करते अर्थात निर्जल रहकर संपूर्ण उपवास रखते हैं।


चौथे यानी पर्व के आखिरी दिन ठीक उसी जगह सभी व्रतधारी वापस एकत्रित होते हैं। प्रसाद से सजे बांस से बने सूप पर दीप प्रज्वलित किया जाता है तथा उगते हुए सूर्य को पुन: उसी विधि से, जिस विधि से सायंकाल की पूजा समाप्ति होती है, पुन: पूजा करने की प्रथा है। तकरीबन 36 घंटे के उपवास के बाद यह व्रत समाप्त होता है।


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