आज भी प्रासंगिक है चाणक्य नीति...!

punjabkesari.in Tuesday, Jun 18, 2024 - 07:42 AM (IST)

आज से कोई 2500 साल पहले जन्मे विष्णु गुप्त कौटिल्य (आर्य चाणक्य) ने अत्याचारी नंद वंश को समाप्त कर चन्द्रगुप्त मौर्य को गद्दी पर बिठाया था। उनका दिशा-निर्देश एक निष्पक्ष शासन के लिए विकेंद्रित समाज को पूरा जिम्मा सौंपता है, ‘‘राज राज्य के सैन्य बल या धर्म सत्ता से नहीं, जनशक्ति से सफल होता है।’’ निर्भीकता से यह कहने वाले आर्य चाणक्य सत्ता से कोसों दूर एक झोंपड़ी में रहते थे। 

सेना पर निर्भर देशों के बिगड़े हालात हम देख रहे हैं और धर्मांध देश आधुनिक युग में कैसे लचर साबित हो रहे हैं यह भी देख रहे हैं। यह सही है कि वह काल औद्योगिक बसावट वाला नहीं था, लेकिन आज की तरह विदेशी प्रभाव उस समय भी था। जब विदेशी आक्रमण हुआ तो चाणक्य के कुशल मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त की सेना ने सिकंदर को परास्त कर दिया था। ‘राज्य की सफलता के लिए शस्त्र,  शास्त्र और भूमि का समुचित दोहन जरूरी है। यह चाणक्य विधान आज ज्यादा प्रासंगिक है। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री जी ने एकदम सही नारा दिया था, ‘जय जवान जय किसान’। 

भारत में ‘पंचायती राज’ चाणक्य ने प्रारंभ किया था। इस देश को दिया हुआ उनका यह सर्वोत्तम उपहार है। खेत और वन भारत के मूलधन हैं और जब व्यापारी अपना मूलधन ही खाना शुरू कर दे, तो उसका व्यापार चौपट होना स्वाभाविक है। इसी बात को लेकर चाणक्य ने खेती में सुधार के लिए काम किया। देवदासी, विधवा, त्याज्य, विकलांग और वेश्याओं के भरण-पोषण के लिए उन्हें स्थानीय रोजगार उपलब्ध कराया जाता था जिसमें कपड़ा बुनाई और मंदिरों में दीपों के लिए कपास की बत्तियां आदि बनवाना शामिल था। हर गांव में तालाब और चरनोई हो, यह कौटिल्य ने किया। चरनोई की व्यवस्था बहुत ही वैज्ञानिक थी। ‘पड़त-भूमि’ पर पशुओं को रखा जाता था। वहां उनके लिए चारे-पानी की व्यवस्था पंचायत करती थी। 12 साल तक वहां पशुओं के गोबर और गौमूत्र से जब वह भूमि उर्बर हो जाती तब चरनोई दूसरी पड़त भूमि पर ले जाई जाती थी। इस तरह से कृषि भूमि का विस्तार हो जाता था। 

वन और खेत पंचायतों की स्वायत्तता में रहेंगे। यह चाणक्य ने किया। उनका मानना था कि खेत और गांव छोटे आकार के होने चाहिएं। हर गांव में 100 से 500 मकान ही हों। चाणक्य ने वनीकरण करवाया, वृक्षों से पशुओं के लिए चारा, इमारती लकड़ी और जलाऊ लकड़ी की व्यवस्था की। वन काटने वाले को कड़ी सजा मिलती थी। पशुओं के लिए गांव-गांव में चिकित्सक थे। उन्हें भरण-पोषण के लिए जमीन दी जाती थी, जिसे वे बेच नहीं सकते थे। किसानों से वाजिब लगान लिया जाता था और नियमित रूप से लगान देने वालों को पुरस्कृत किया जाता था। हर गांव में संदेश वाहक रखे जाते थे, ताकि राजा तक वहां की समस्याएं पहुंचाई जा सकें। 

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहीं भी मुद्रा विनियम और लेन-देन का उल्लेख नहीं है। उनका लिखा अर्थशास्त्र एक प्रकार से समाज शास्त्र है जो यह बताता है कि राजा से लेकर सामान्य नागरिक के कत्र्तव्य क्या हैं। दुर्भाग्य से उनका लिखा अर्थशास्त्र हमारे स्कूल और कालेज से नदारद है। चाणक्य ने गांवों के साथ-साथ नगर-विधान भी लिखा। वे यह निश्चित करते थे कि नगरों में जनसंख्या सीमित हो। नगरों में भीड़ बढऩे पर वे उन्हें वापस  गांवों में भेज देते थे। शाम को नगरों के द्वार बंद कर दिए जाते थे। 

यह प्रसन्नता की बात है कि भारत के विभिन्न राज्यों में कई स्थानीय पंचायतों ने क्रांतिकारी कदम उठा कर वहां के समाज को सशक्त किया है फिर वह धर्म उद्योग हो, हस्तशिल्प हो, कच्ची घाणी का तेल हो, साबुन हो, सौंदर्यीकरण के नाम पर स्थानीय वस्तु को उखडऩे का विरोध हो, वैध्याय की समाप्ति हो या मशीनीकरण आदि का विरोध हो। इन्हें और सुचारू रूप देने के लिए चाणक्य आज भी इतने ही प्रासंगिक हैं। गांधी विचार में इस दर्शन को गहराई से समझने को प्रमाण मौजूद हैं।-किशनगिरि गोस्वामी     
    


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