चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा सही नीतियां बनाने की आवश्यकता

punjabkesari.in Saturday, Jan 04, 2025 - 05:25 AM (IST)

यह वर्ष मुश्किलों भरा रहने वाला है। दुनिया में तेजी से तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे बदलाव के कारण हमारे जैसे सभी देश जो गरीबी से निकलकर विकासशील बनने की राह पर हैं और विकसित देशों की कतार में शामिल होना चाहते हैं, उन सभी के लिए सबसे बड़ी यह कठिनाई रहने वाली है कि वे अपने अल्प साधनों के बल पर कैसे इस दौड़ में शामिल रह पाएंगे? इसका सबसे बड़ा कारण, अगर हम केवल अपने देश की ही बात करें तो यह है कि हमने गरीब की गरीबी को बढ़ाया है और अमीर को इतने साधन देने का काम किया है कि उसके लिए धन दौलत की सीढिय़ां चढऩे की रफ्तार रुक ही नहीं रही है। कुछ लोगों में तो इस बात की प्रतियोगिता होती दिखाई देती है कि वे दुनिया में सबसे अमीर लोगों में कौन से नंबर पर आते हैं।

शिक्षा व्यवस्था की पोल : हमारे देश में आजादी के बाद जहां तक शिक्षा का संबंध है, घोषणा बहादुर सरकारों की कोई कमी नहीं रही और जो वर्तमान भाजपा सरकार है, उसे घोषणा वीर कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसका प्रमाण यह है कि अभी तक शिक्षा का बुनियादी ढांचा ही नहीं बन पाया है, खास तौर से देहाती और कस्बाई इलाकों में, अगर कुछ है भी तो वह दिल्ली और राज्यों की राजधानियों तक ही सिमट कर रह गया है। अगर किसी को बढिय़ा और रोजगार दे सकने वाली पढ़ाई करनी है तो उसे बड़े शहरों का रुख करना होगा। यहां भी अच्छे शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिलना मुश्किल होने से कुकुरमुत्ते की तरह उग आए स्कूल, कॉलेज और भारी फीस लेने वाले शिक्षा के नाम पर दुकानें चलाने वाले लोगों का वर्चस्व है।

ये अधिकतर वे लोग हैं जिनका इरादा अधिक से अधिक मुनाफा कमाना होता है, उनका शिक्षा की गुणवत्ता या क्वालिटी से कोई लेना-देना नहीं होता। इन पर कोई अंकुश भी नहीं लगता क्योंकि यहां धन बल और नेताओं से संबंध होना ही पर्याप्त है। जिस तरह सरकारी स्कूलों में पुराने जमाने का विकृत इतिहास और सड़े गले विषयों को रटंत विद्या के माध्यम से पढ़ाया जाता है, उसी तरह निजी संस्थानों में भी यही सिलेबस अपनाया जाता है। यहां से निकलने के बाद विद्यार्थी का जब नौकरी या रोजगार के लिए वास्तविकता से आमना सामना होता है तो वह अपने को अनपढ़ ही पाता है। इस प्रकार कहने को शिक्षित लेकिन किसी भी सम्मानजनक या अपनी महत्वाकांक्षा से प्रेरित होकर कैसा भी व्यवसाय करने की योग्यता का उनमें निरंतर अभाव रहता है। वे फिर जो मिला उसे ही भाग्य समझकर एक ऐसे दलदल में प्रवेश कर जाते हैं जहां जीवन भर की छटपटाहट के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होता।

वास्तविकता यह है कि 30 वर्ष तक के एक चौथाई युवा बेरोजगार हैं। या तो वे बिल्कुल अनपढ़ हैं या मामूली अक्षरज्ञान है और वे छोटे-मोटे घरेलू या किसी दुकान या गली मोहल्लों में खुले मैकेनिक या कल कारखानों में काम करते हुए अपना जीवन किसी तरह गुजार देने को ही अपनी काबिलियत समझते हैं। अगर उनकी पढ़ाई-लिखाई का सही प्रबंध होता तो वे अपनी जिंदगी को खुशहाल तरीके से व्यतीत करने में सफल होते। ऐसे में कुछ तो अपने गांव जाकर खेतीबाड़ी या खेत मजदूरी करने लगते हैं। वहां कम से कम शहरों जैसी महंगाई तो नहीं होती और कम आमदनी होने पर भी गुजर-बसर हो जाती है। 

अर्थव्यवस्था और महंगाई का संबंध : वर्तमान सरकार की नीतियों की बदौलत इस साल महंगाई अपने चरम पर रहने वाली है। हमारी विकास दर नीचे गिर रही है और सरकार है कि उस पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रही है क्योंकि उसका लक्ष्य केवल अधिक से अधिक टैक्स वसूलना है चाहे वह सामने दिखाई देता हो या जनता की जेब से चुपचाप निकाल लिया जाता हो। जितनी तनख्वाह बढ़ी या कमाई हुई उससे अधिक आवश्यक वस्तुओं जैसे पैट्रोल डीजल तथा खाने पीने की चीजों की कीमतें बढ़ जाती हैं। सरकार की गलत और केवल धनी वर्ग को ध्यान में रखकर बनाई जाने वाली आर्थिक और व्यापारिक तथा औद्योगिक नीतियों के कारण कॉर्पोरेट जगत और बड़े घरानों की आमदनी और उनका प्रॉफिट माॢजन लगातार बढ़ता रहेगा जिससे आम आदमी को प्रत्येक वस्तु के तेजी से बढ़ते दामों का सामना करना पड़ेगा।

यदि फरवरी में पेश किए जाने वाले बजट में कोई उचित प्रावधान जिससे महंगाई कम हो सके, नहीं किया गया तो जनता का आक्रोश अपनी सीमा लांघ सकता है और सरकार के प्रति अविश्वास और उसके अस्तित्व के लिए चुनौती बन सकता है। यहां तक कि उसके गिरने की भी संभावना बन सकती है। इसलिए यह न समझा जाए कि 5 वर्ष के लिए पिछले वर्ष चुन लिए गए तो पूरी अवधि तक राज करते रहेंगे। 

भ्रष्टाचार और प्रदूषण तथा पर्यटन : भारत की सबसे बड़ी समस्या बड़े नेताओं और सरकारी अधिकारियों द्वारा बिना किसी तरह की रिश्वत लिए काम न करना है। सुविधा शुल्क की महामारी अब निचले स्तर पर भी तेज गति से फैल रही है। 
चाहे नौकरी हो, रोजगार या व्यवसाय हो या फिर कोई साधारण काम हो, अधिकारी की मुट्ठी गर्म करने का प्रावधान और इंतज़ाम करना पड़ता है जिसके बिना या तो आपकी फाइल लंबे समय तक इधर से उधर चक्कर काटती रहेगी या कहीं खो जाएगी जिसे खोजना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। इसी से जुड़ी समस्या प्रदूषण की है जिसका जन्म भ्रष्टाचार से ही हुआ है। सन 2036 में हमें ओलंपिक खेलों की मेजबानी करनी है और तब की तैयारी अभी से करनी होगी वरना जग हंसाई होना निश्चित है। यही कुछ है जो 2025 में अपेक्षित है जिसकी अगर उपेक्षा की गई तो वह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान होगा।-पूरन चंद सरीन 
 


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