चाणक्य के इस प्रेरक प्रसंग से जानिए रूप बड़ा, गुण बड़ा या बुद्धि?

punjabkesari.in Sunday, Nov 28, 2021 - 12:29 AM (IST)

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आचार्य चाणक्य स्वयं कुरूप थे। चंद्रगुप्त मौर्य को एक दिन मजाक सूझा और उन्होंने चाणक्य से कहा, ‘‘आप कितने गुणवान हैं परन्तु क्या ही अच्छा होता आप रूपवान भी होते।’’

आचार्य कुछ बोलते उससे पहले ही महारानी ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज, रूप तो मृगतृष्णा है। व्यक्ति की पूजा उसके रूप से नहीं बल्कि गुण और बुद्धि से होती है।’’

चंद्रगुप्त ने कहा, ‘‘आप रूपवती होकर भी ऐसी बातें कहती हैं। क्या कोई ऐसा उदाहरण है, जहां गुण के सामने रूप की कोई अहमियत न हो?’’

चाणक्य ने उत्तर दिया, ‘‘बहुत से उदाहरण भरे पड़े हैं महाराज। आप पहले यह ठंडा पानी पीकर शांत हो लें, फिर बात करेंगे।’’

इतना कहकर उन्होंने तुरन्त पानी के दो गिलास बारी-बारी से राजा की ओर बढ़ा दिए। राजा के पानी पी लेने के बाद चाणक्य ने पूछा, ‘‘महाराज, पहले गिलास में सोने के घड़े का पानी था और दूसरे में मिट्टी के घड़े का। अब आप बताएं कि किस घड़े का पानी आपको अच्छा लगा?’’ राजा ने उत्तर दिया, ‘‘मिट्टी के घड़े का पानी अच्छा था। उसे पीकर मैं तृप्त हो गया।’’

महारानी ने कहा, ‘‘महाराज, हमारे आचार्य जी ने आपके सवाल का जवाब दे दिया। दूर से ही चमचमाने वाले सोने के घड़े की खूबसूरती देखते ही बनती है, मगर वह घड़ा भला किस काम का, जिसका पानी पीने लायक ही न हो। दूसरी तरफ मिट्टी का घड़ा देखने में तो कुरूप है, मगर उसमें बहुत बड़ा गुण छिपा है। अब आप ही बताइए, रूप बड़ा है या गुण और बुद्धि?’’
 
रानी की बात सुनकर राजा चंद्रगुप्त ‘हां’ कहते हुए मुस्कुरा दिए।
 


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Content Writer

Jyoti

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