क्या है स्वदेश प्रेम का अर्थ, आचार्य चाणक्य से जानिए
punjabkesari.in Thursday, Jul 01, 2021 - 12:47 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक चीनी दार्शनिक आचार्य चाणक्य से मिलने आया। जब वह चाणक्य के घर पहुंचा तब तक अंधेरा हो चुका था। घर में प्रवेश करते समय उसने देखा कि तेल में दीप्यमान एक दीपक के प्रकाश में चाणक्य कोई ग्रंथ लिखने में व्यस्त हैं। अपना लेखन कार्य समाप्त कर उन्होंने उस दीपक को बुझा दिया जिसके प्रकाश में वे आगंतुक के आगमन तक कार्य कर रहे थे।जब दूसरा दीपक जलाकर वे उस चीनी दार्शनिक से वार्तालाप करने लगे तो उस चीनी दार्शनिक के आश्चर्य की कोई सीमा न रही। उसने सोचा कि अवश्य ही भारत में इस तरह का कोई रिवाज होगा। उसने जिज्ञासावश चाणक्य से पूछा, ‘‘मित्र, मेरे आगमन पर आपने एक दीपक बुझा कर ठीक वैसा ही दूसरा दीपक जला दिया। दोनों में मुझे कोई अंतर नहीं दिखता। क्या भारत में आगंतुक के आने पर नया दीपक जलाने का रिवाज है।’’
प्रश्न सुनकर चाणक्य मुस्कुराए और उत्तर दिया, ‘‘नहीं मित्र, ऐसी कोई बात नहीं, जब आपने मेरे घर में प्रवेश किया उस समय मैं राज्य का कार्य कर रहा था इसलिए वह दीपक जला रखा था, जो राजकोष के धन से खरीदे हुए तेल से दीप्यमान था। किंतु अब मैं आपसे वार्तालाप कर रहा हूं। यह मेरा व्यक्तिगत वार्तालाप है। अत: मैं उस दीपक का उपयोग नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करना राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग होगा। बस यही कारण है कि मैंने दूसरा दीपक जला लिया। स्वदेश प्रेम का अर्थ है अपने देश की वस्तु की अपनी वस्तु के समान रक्षा करना।’’
चाणक्य का देशप्रेम देखकर वह चीनी यात्री, उनके समक्ष नतमस्तक हो गया।
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