चैत्र नवरात्रि 2019 : इस विधि से करें आज ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न

punjabkesari.in Sunday, Apr 07, 2019 - 08:15 AM (IST)

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शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन मां के भक्त पूरी तरह से अपने मन को माता के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या, चारिणी का आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। शास्त्रों में इनके रूप का वर्णन कुछ इस प्रका है- देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल विराजित हैं। ज्योतिष के अनुसार मां नवदुर्गा का ये स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। इतना ही नहीं जिस जातक पर मां ब्रह्मचारिणी की कृपा हो जाती है उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में केवल अवस्थित मनवाला ही योगी मां ब्रह्मचारिणी की कृपा और भक्ति प्राप्त कर पाता है।
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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि-
सबसे पहले देवी ब्रह्मचारिणी की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें और उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, और मधु से स्नान कराएं। इसके बाद इन्हें प्रसाद अर्पित करें। प्रसाद के बाद आचमन, पान, सुपारी आदि भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। फिर स्थापित किए कलश की पूजा करने के बाद नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। अब हाथों में एक फूल लेकर देवी की पूजा करते समय प्रार्थना करें-

इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलु
देवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा

देवी को पंचामृत से स्नान कराएं और फिर फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर, अर्पित करें। इसके साथ ही देवी को अरूहूल का फूल व कमल का फूल ज़रूर चढ़ाएं क्योंकि ये इनके प्रिय फूल माने जाते हैं। देवी को फूलों की माला पहनाएं, घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें।
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मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ-
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

“मां ब्रह्मचारिणी का कवच” 

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥

षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

उपासना मंत्र-
या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
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Jyoti

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