वसुदेव और देवकी जी के दुखों का अंत करने के लिए हुआ राम-श्याम का अवतार

punjabkesari.in Tuesday, Jun 06, 2017 - 11:33 AM (IST)

देवकी उग्रसेन के छोटे भाई देवक की सबसे छोटी कन्या थी। कंस अपनी छोटी चचेरी बहन देवकी से अत्यंत स्नेह करता था। जब उनका विवाह वसुदेव जी से हुआ तो कंस स्वयं रथ हांक कर अपनी उस बहन को पहुंचाने चला। रास्ते में आकाशवाणी हुई, ‘‘मूर्ख! तू जिसे इतने प्रेम से पहुंचाने जा रहा है, उसी के आठवें गर्भ से उत्पन्न पुत्र तेरा वध करेगा।’’


आकाशवाणी सुनते ही कंस का सारा प्रेम समाप्त हो गया। वह रथ से कूद पड़ा और देवकी जी के केश पकड़ कर तलवार से उनका वध करने के लिए तैयार हो गया।
तब वसुदेव जी ने उससे निवेदन किया, ‘‘महाभाग! आप क्या करने जा रहे हैं? विश्व में कोई अमर होकर नहीं आया है। आपको स्त्री वध जैसा जघन्य पाप नहीं करना चाहिए। यह आपकी छोटी बहन हैं और आपके लिए पुत्री के समान हैं। अत: आप कृपा करके इन्हें छोड़ दें। आपको इनके पुत्र से भय है। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि इनसे जो भी पुत्र होगा, उसे मैं आपको लाकर दे दूंगा।’’


कंस ने वसुदेव जी के वचनों पर विश्वास करके देवकी जी को छोड़ दिया। कंस स्वभाव से ही अत्याचारी था। इसलिए उसने अपने पिता उग्रसेन को भी बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था। शासक होते ही उसने अपने असुर सेवकों को स्वतंत्रता दे दी। यज्ञ बंद हो गए। धर्मकृत्य अपराध माने जाने लगे। गौ और ब्राह्मणों की हिंसा होने लगी।


समय पाकर देवकी जी को प्रथम पुत्र हुआ। वसुदेव जी अपने वचन के अनुसार उसे लेकर कंस के समीप पहुंचे। कंस ने उनका आदर किया और कहा, ‘‘इससे मुझे कोई भय नहीं है। आप इसे लेकर लौट जाएं।’’ 


वहां देवर्षि नारद भी थे। उन्होंने कहा, ‘‘आपने यह क्या किया? विष्णु ने आपके वध के लिए अवतार लेना है। पता नहीं वह किस गर्भ में आएं। पहला गर्भ भी आठवां हो सकता है और आठवां गर्भ भी पहला हो सकता है।’’


देवर्षि नारद की बात सुनकर कंस ने बच्चे का पैर पकड़ कर उसे शिलाखंड पर पटक दिया। देवकी चीत्कार कर उठीं। कंस ने नवदम्पति को तत्काल हथकड़ी-बेड़ी में जकड़ कर कारागार में डाल दिया और कठोर पहरा बिठा दिया।


इसी प्रकार देवकी जी के छ: पुत्रों को कंस ने क्रमश: मौत के घाट उतार दिया। सातवें गर्भ में अनन्त भगवान् शेष पधारे। भगवान् के आदेश से योगमाया ने इस गर्भ को आकर्षित करके वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया। यह प्रचार हो गया कि देवकी जी का गर्भ स्रवित हो गया।


देवकी जी के आठवें गर्भ का समय आया। उनका शरीर ओज से पूर्ण हो गया। कंस को निश्चय हो गया कि इस बार जरूर मुझे मारने वाला विष्णु आया है। पहरेदारों की संख्या बढ़ा दी गई। भाद्रपद की अंधेरी रात की अष्टमी तिथि थी। शंख, चक्र, गदा, पद्म, वनमाला धारण किए भगवान् देवकी- वसुदेव समक्ष प्रकट हुए। भगवान् का दर्शन करके माता देवकी धन्य हो गईं।


पुन: भगवान् नन्हे शिशु के रूप में देवकी की गोद में आ गए। पहरेदार सो गए। वसुदेव-देवकी की हथकड़ी-बेड़ी अपने-आप खुल गई। भगवान् के आदेश से वसुदेव जी उन्हें गोकुल में यशोदा जी की गोद में डाल आए और वहां से उनकी तत्काल पैदा हुई कन्या ले आए। कन्या के रोने की आवाज सुनकर पहरेदारों ने कंस को सूचना पहुंचाई और वह बंदीगृह में दौड़ता हुआ आया। देवकी से कन्या को छीनकर कंस ने जैसे ही उसे शिला पर पटकना चाहा, वह उसके हाथ से छूट कर आकाश में चली गई और कंस के शत्रु के कहीं और प्रकट होने की भविष्यवाणी करके अंतर्ध्यान हो गई।


एक-एक करके कंस के द्वारा भेजे गए सभी दैत्य गोकुल में श्रीकृष्ण-बलराम के हाथों यमलोक सिधारे और अंत में मथुरा की रंगशाला में कंस की मृत्यु के साथ उसके अत्याचारों का अंत हुआ। वसुदेव-देवकी के जयघोष के स्वरों ने माता देवकी को चौंका दिया और जब माता ने आंख खोलकर देखा तो राम-श्याम उनके चरणों में पड़े थे। वसुदेव-देवकी के दुखों का अंत हुआ।


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