जब कसाई से हुआ भगवान को प्यार

punjabkesari.in Monday, May 28, 2018 - 12:15 PM (IST)

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संत सदन का पेशा था तो कसाई का लेकिन जीव-हिंसा से वह द्रवित हो उठते थे।  आजीविका का कोई अन्य उपाय न होने से वह दूसरे कसाइयों से मांस खरीदकर बेचा करते थे। बचपन से ही हरि कीर्तन में रुचि होने के कारण वह सदा लीलामय पुरुषोत्तम के नाम जप, गुणगान और चिंतन में लगे रहते थे।
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मांस तोलते समय बाट रूप में जिस पत्थर का प्रयोग करते, वस्तुत: वह भगवान शालिग्राम थे, जिससे वह अनभिज्ञ थे। बाट समझकर उसी से वह मांस तोला करते थे। एक दिन एक साधु उनकी दुकान के सामने से जा रहे थे कि उनकी नजर तराजू में रखे शालिग्राम पर पड़ी। मांस विक्रेता के तराजू पर भगवान को देख उन्हें क्रोध आया। उन्होंने सदन से उसे मांग लिया और उसकी विधिपूर्वक पूजा कर अपने पूजाघर में रख दिया।
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मगर भगवान तो प्रेम के भूखे हैं, मंत्र या विधि की वह जरा भी अपेक्षा नहीं करते। उन्होंने रात में साधु को स्वप्र में कहा, ‘‘सदन के यहां मुझे बड़ा सुख मिलता था, वहां से उठाकर तुम मुझे यहां क्यों ले आए। मांस तोलते समय उसका स्पर्श पाकर मैं बड़े आनंद का अनुभव करता था। उसके मुख से निकले शब्द मुझे मधुर स्रोत जान पड़ते थे। यहां मैं घुटन महसूस कर रहा हूं। अच्छा होता तुम मुझे वहीं पहुंचा देते।’’
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जागने पर साधु महाराज तुरंत शालिग्राम को लेकर सदन के पास पहुंच गए। उन्हें बताया कि यह कोई बाट या पत्थर नहीं बल्कि साक्षात शालिग्राम भगवान हैं। यह सुन सदन को पश्चाताप हुआ। मन ही मन बोले, ‘‘मैं भी कितना पापी हूं कि भगवान को अब तक अपवित्र स्थल पर रखता रहा। उन्हें पश्चाताप की मुद्रा में देख साधु ने उन्हें अपने सपने की बात बताई तथा कहा कि भगवान को और कुछ नहीं चाहिए। वह तो बस सच्चे प्यार के भूखे हैं जो आपसे उन्हें मिल रहा है।’’
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Niyati Bhandari

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