Ayodhya: त्रेता युग में ऐसी थी अयोध्या

punjabkesari.in Tuesday, Jan 23, 2024 - 08:35 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

भारत में राम राज्य की चर्चा तो गाहे-बगाहे होती है। ऐसे में इस स्पेशल स्टोरी में आइए जानते हैं कि राम के वक्त अयोध्या कैसी थी और उसका राम राज्य कैसा था ? 

14 सालों का वनवास काटकर अयोध्या लौटे श्रीराम का राज्याभिषेक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में छठवीं तिथि को हुआ था। इंस्टीच्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज की मानें तो यह वाकया करीब 5075 ईसा पूर्व का है, यानी इस घटना को घटे करीब 7000 साल हो चुके हैं।

राज्याभिषेक के बाद भगवान राम के लोकगमन तक की अवधि को राम राज्य कहा जाता है यानी राम का शासन। कहा जाता है कि राम ने अयोध्या में करीब 45 साल तक शासन किया।

• न्याय कैसे मिलता था ? 
शास्त्रों में राम राज्य को आदर्श राज्य व्यवस्था की संज्ञा दी गई है। इसे यूटोपिया (आदर्शवाद की चरम स्थिति) भी कहा जाता है। किंवदंती है कि राम राज्य में चीजें इतनी संतुलित थीं कि नदी के एक ही घाट पर बकरी और बाघ साथ पानी पीते थे। यही वजह है कि 7090 साल बाद भी नेता और पार्टियां अपने यहां राम राज्य लाने की बात करती हैं।

• राम राज्य में कैसी थी टैक्स की व्यवस्था ? 
राम राज्य में लोगों की समृद्धि पर सबसे ज्यादा फोकस किया गया था। तंत्र इसी के अनुरूप कार्य करता था। सीमा विस्तार और प्रजा की समृद्धि के लिए राम ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन कराया था।

राम राज्य में अनाज पर्याप्त मात्रा में था। इसकी बड़ी वजह लोगों का कृषक होना था। टैक्स कलैक्शन को लेकर राम राज्य में 2 नियम थे।

तुलसीदास रामचरित मानस में लिखते हैं- “मणि-माणिक महंगे किए, सहजे तृण, जल, नाज; तुलसी सोइ जानिए राम गरीब नवाज” 

इसका अर्थ है- जेवरात को महंगा किया जाए, जिससे लोग इसे आसानी से खरीद न सकें वहीं जल और अनाज की सुगम उपलब्धता कराई जाए। 

• राम राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य का हाल ? 

रामचरित मानस में तुलसीदास लिखते हैं- 
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा, सब सुंदर सब बिरुज सरीरा 
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना, नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना

अर्थात- राम राज्य में छोटी अवस्था में किसी की मृत्यु नहीं होती है। न किसी को कोई पीड़ा होती है। सभी के शरीर सुंदर और निरोग हैं। न कोई दरिद्र है, न दुखी है और न दीन ही है, न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है।

अपराध को लेकर क्या नियम थे ? 
राम राज्य में एकाध अपराध को छोड़ दिया जाए, तो किसी भी अपराध का कोई जिक्र नहीं है। 

राम चरित मानस में तुलसीदास लिखते हैं- ‘दंड जतिन्ह कर भेद जहं नर्तक नृत्य समाज, जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज’ 

अर्थात राम राज्य में दंड (एक तरह का वस्तु) केवल संन्यासियों के हाथों में है और भेद नाचने वालों के नृत्य समाज में है। तुलसीदास के मुताबिक रामराज्य में कोई किसी का शत्रु नहीं था, इसलिए दंड देने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। राम राज्य में अपराध कितना और किस तरह का होता था, इसके बारे में भले नहीं बताया गया है, लेकिन कुछ जगहों पर न्याय का जिक्र जरूर है।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Prachi Sharma

Related News