भगवान शिव की जयंती को जन्मदिन न कहकर शिवरात्रि कहा जाता है
punjabkesari.in Tuesday, Feb 17, 2015 - 10:34 AM (IST)

विश्व की सभी महान विभूतिओं के जन्मदिन उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं लेकिन परमात्मा शिव की जयंती ही ऐसी है जिसे जन्मदिन न कहकर शिवरात्रि कहा जाता है।
इसका अर्थ है परमात्मा शिव जन्म-मरण से न्यारे अथवा अयोनि हैं। उनका किसी महापुरुष या देवता की तरह लौकिक या शारीरिक जन्म नहीं होता है। यह पावन पर्व हम सभी आत्माओं के पिता परमात्मा के दिव्य, अलौकिक अवतरण का यादगार पर्व है। जब-जब इस सृष्टि पर पाप की अति, धर्म की ग्लानि और पूरी दुनिया दुखों से घिर जाती है तो गीता में किए अपने वायदे अनुसार परमात्मा इस धरा पर अवतरित होते हैं और पुन: सत्धर्म की स्थापना, सज्जा गीता ज्ञान एवं मनुष्यात्माओं को पतित से पावन बनाने के लिए सहज राजयोग की शिक्षा देते हैं। परमात्मा का अवतरण अलौकिक और दिव्य होता है। इसे देखने एवं पहचानने के लिए उसी रूप में आना पड़ता है।
परमात्मा इसकी विधि भी बताते हैं ताकि कोई भी रुकावट और अड़चन पैदा न हो सके। वह कलियुग के अंत में एक साधारण मनुष्य के तन में परकाया प्रवेश करते हैं और जिसका नाम वह प्रजापिता ब्रह्मा रखते हैं।
भारत देश में 33 करोड़ देवी-देवताओं की महिमा गाई हुई है परंतु इन सभा देवों के भी रचनाकार स्वयं परमपिता परमात्मा शिव ही हैं जिनकी अनेक धर्मों, अनेक रूपों में भले ही पूजा की जाती है परंतु उसका केंद्र बिंदु परमात्मा शिव के पास ही जाकर समाप्त होता है। परमात्मा शिव देवों के भी देव महादेव, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी रचयिता त्रिमूर्ति हैंं।
वे ब्रह्मा द्वारा नई सतयुगी सृष्टि की स्थापना कराते हैं, विष्णु द्वारा पालन और शंकर द्वारा इस आसुरी, तमोगुणी सृष्टि का विनाश कराते हैं। परमात्मा तीनों लोकों के मालिक त्रिलोकी नाथ, तीनों काल को जानने वाले त्रिकालदर्शी हैं। अत: हम सबका कर्तव्य है कि उनकी आज्ञानुसार हम निष्ठा व पवित्रता और शुद्धता का पालन करें और शिव के अर्पण होकर संसार की ज्ञान सेवा करें।
वास्तव में यही सज्जा पाशुपत व्रत है। इसका फल मुक्ति और जीवन-मुक्ति की प्राप्ति माना गया है। अब मनुष्यों को चाहिए कि विकारों रूपी विष से नाता तोड़ कर परमात्मा शिव से अपना नाता जोड़ें।