विचार करें, कहीं आप भी तो नहीं कर रहे संस्कारों का ‘अंतिम संस्कार’
punjabkesari.in Wednesday, May 11, 2022 - 10:24 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Anmol Vachan: भारत ऋषि-मुनियों, पीर-पैगम्बरों का देश है। यहां ईश्वरीय ज्ञान, वेद, रामायण, गीता, गुरु ग्रंथ साहिब आदि हमेशा से मानवता का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करते रहे हैं। भारत को अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा परम्परा पर नाज रहा है। हमारे यहां सभी धर्मों, जातियों, समुदायों तथा प्रदेशों द्वारा सभी तीज-त्यौहारों को मिल-जुल कर हर्षोल्लास के साथ मनाने की परम्परा रही है। हमारे यहां पराए धन को मिट्टी, पराई स्त्री को मां, बहन या बेटी की तरह समझने की अनूठी सोच रही है। बड़े-छोटे का लिहाज करना आम बात मानी जाती रही है। हमारे यहां पड़ोसी को सगे भाई से भी बढ़कर माननीय तथा विश्वासपात्र समझा जाता है जो हर सुख-दुख में काम आता है।
श्री राम, श्रवण कुमार, सती सावित्री के उदाहरण
हमारे यहां ऐसे संस्कार दिए जाते हैं कि पिता की आज्ञा का पालन करते हुए श्री रामचंद्र जी जैसा बेटा राजसिंहासन को ठोकर मारकर वनवास चला जाए, अंधे मां-बाप को वैंहगी में बिठाकर श्रवण कुमार जैसा बेटा तीर्थ यात्रा कराने चला जाए, सती सावित्री पत्नी ऐसी कि मृत पति सत्यवान को जीवित कराने के लिए यमराज के साथ भिड़ जाए। हमारी परमात्मा से प्रार्थना ऐसी है कि- ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।’
संतोष, संयम, समर्पण, विश्वास, परहित, दया, धर्म, सत्कर्म, अहिंसा, मोक्ष आदि हमारे संस्कारों का अभिन्न अंग रहे हैं जिसकी वजह से भारत विश्व का आध्यात्मिक गुरु रहा है लेकिन आज के बदले हुए हालात देखकर विश्वास नहीं होता कि यह वही भारत है जिस पर जन्म लेने के लिए देवता लोग भी तरसते थे।
बढ़ गई फरेब तथा मक्कारी
सत्यवादी हरिश्चंद्र के देश में लोग झूठ, पाखंड, धोखा, फरेब, मक्कारी का सहारा लेकर हर काम में अपनी नैया पार कर लेना चाहते हैं। भौतिकतावाद की अंधी दौड़ में शामिल होकर लोग भ्रष्ट तथा अनैतिक तरीके अपनाकर धन कमाने के लिए दिन का चैन तथा रातों की नींद बर्बाद कर रहे हैं।
आज हर भारतवासी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार की चपेट में आया हुआ है। मांस, मछली, मद्यपान, परस्त्रीगमन एक आम बात हो गई है।
शासक या राजा का प्रजा-पालन तथा प्रजा की रक्षा करना परम धर्म होता है लेकिन आज के कुछ नेता द्रौपदी रूपी प्रजा का खुद ही चीर हरण कर रहे हैं। अपने परिवार के लिए सभी हथकंडे अपना कर धन संपत्ति इकट्ठा करने में लगे हुए हैं।
आज संस्कारों का ऐसा अंतिम संस्कार हो रहा है कि पति-पत्नी का आपस में पहले जैसा प्रेम-प्यार, मेल-जोल, आपसी विश्वास, त्याग देखने को भी नहीं मिलता।
महिलाओं के साथ मारपीट, बलात्कार, अपहरण आदि आम बात हो गई है। कन्या भ्रूणहत्या करके लोग पुत्र प्राप्त करते हैं तो वही बेटे अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा तो दूर उनका तिरस्कार, अपमान तथा अवहेलना करते हैं। कई बार तो पीट-पीट कर घर से बाहर निकाल देते हैं, तब लगता है कि जैसे संस्कारों का अंतिम संस्कार ही हो गया है।
भाई-भाई का नहीं रहा
आज स्वार्थ, अहंकार तथा लालच के वश में होकर भाई-भाई का, मित्र-मित्र का, पड़ोसी-पड़ोसी के खून का प्यासा बना हुआ है तथा उनके कर्म में बिल्कुल प्रेम, सम्मान और अपनेपन का भाव नहीं है। किसी को लोक-परलोक की कोई चिंता नहीं। कोई किसी का नहीं। सभी को अपनी-अपनी पड़ी है। घोर कलियुग है। सभी को एक-दूसरे के मन में खोट दिखाई देता है।
आदमी की पहचान उसके संस्कारों से
लेकिन यह सब तो मानवता को पतन की तरफ ले जाने वाला है। संस्कार तो आखिर संस्कार ही है। आखिर हमारे पूर्वज बेवकूफ तो नहीं थे कि जो हमारे लिए अच्छे संस्कार छोड़ गए। आदमी की पहचान उसके संस्कारों से होती है। बिना अच्छे संस्कारों के आदमी पशु के समान है।
अगर देश में सच्चाई, ईमानदारी, परिश्रम, आपसी भाईचारा, प्रेम-प्यार, सुख-शांति आदि बनाए रखनी है तो अच्छे संस्कारों का होना आवश्यक है। दया, धर्म, परहित, संतोष, प्रेम -प्यार, मीठे वचन, ममता, सरलता, देशभक्ति, माता-पिता तथा बड़ों के प्रति श्रद्धा-सम्मान, भाई-बहन तथा अन्य संंबंधियों तथा मित्रों के प्रति कर्तव्य परायणता ही हमारे संस्कारों का आधार होना चाहिए। हर आदमी को अपना धर्म पालन करते हुए ईमानदारी तथा परिश्रम से काम करना चाहिए।