Ancient and famous Vat trees: ये हैं भारत के प्राचीन व प्रसिद्ध ‘वट वृक्ष’

punjabkesari.in Thursday, Aug 25, 2022 - 10:33 AM (IST)

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Ancient and famous Vat trees of India: आदि-अनादि काल से पेड़-पौधे मानव जीवन के परम सहयोगी रहे हैं, जिसमें पंच पल्लव के अंतर्गत वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ को सर्वप्रमुख स्थान प्राप्त है। वट वृक्ष की ही पूजा माता सती ने कैलाश पर्वत पर शिवशंकर की प्राप्ति के लिए की थी। सती सावित्री ने सत्यवादी सत्यवान की प्राप्ति हेतु अखंड सती पर्व वट वृक्ष के नीचे ही सम्पन्न किया था, तो प्रलय काल में आदि नारायण वट पत्र पर ही शिशु रूप में विराजित हुए। भारत वर्ष में वट वृक्ष यत्र-तत्र सर्वत्र हैं, पर उनमें 7 तीर्थों के वट वृक्ष को पुण्यकारी स्थान प्राप्त है, जिनमें गया के प्राचीन पवित्र पुनीत वट को अक्षयवट कहा जाता है। गया का अक्षयवट पितृतीर्थ मोक्षधाम में सायुज्य मुक्ति प्रदाता है, तभी तो गया जहां श्राद्ध की इतिश्री होती है, वहीं है अक्षयवट।

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गया का वट वृक्ष
प्राचीन 365 वेदियां, मध्ययुगीन 54 वेदियां और वर्तमान त्रिवेदियों में गण्य अक्षयवट गया-बोधगया मार्ग पर स्थित माऊनपुर मोड़ से आधे कि.मी. दूरी पर है, जहां एक तरफ गदालोल वेदी तो दूसरी ओर माता मंगला गौरी का प्रसिद्ध मंदिर व भाव्यकूट पर्वत है। अक्षयवट की स्थिति राजा तीर्थ के दक्षिण में है, जिसके पीछे रुक्मिणी सरोवर व उसके आगे कपिलधारा नामक प्राचीन तीर्थ है। गया के अक्षयवट का उद्धार युगपिता ब्रह्मा ने किया तो ‘अक्षय’ होने का वरदान माता सीता से मिला। गया के अक्षयवट को जगतख्यात बनाने में श्री कृष्ण व पांडव बंधुओं का अमूल्य योगदान है।

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तब महाभारतकालीन गया देशीय तीर्थों में अक्षयवट का अक्षुण्ण महत्व कायम था और इसकी परिपाटी आज भी विद्यमान है। तीर्थ दीपिका से स्पष्ट होता है कि :
वृंदावने वटोवंशी प्रयागेथ मनोरथा:
गयायां अक्षयख्यात: कल्पवस्तु पुरुषोत्तम॥
निष्कुंभावलु लंकायां मूलैक पंचघाटव
एतेषु वट मूलेषु सदा तिष्ठित माधव:॥

अर्थात वृंदावन में वंशीवट, प्रयाग में मनोरथवट, गया में अक्षयवट, जगन्नाथपुरी में कल्पवट और लंका में निष्कुंभ वट विराजमान हैं। इनमें लंका का निष्कुंभ वट हटाकर उज्जैन का सिद्धवट, पंचवटी का पंचवट और काशी का माधव वट मिलाकर पुण्य स्वरूपा सप्रवट की गणना की गई है और इनका अपना शास्त्रीय आधार भी है।

वृंदावन तथा प्रयागराज के वट वृक्ष
वृंदावन में यमुना किनारे के दर्जन भर घाटों के मध्य वंशीवट घाट है, जहां पर जाकर उस महान तरु का दर्शन किया जा सकता है, जिसके मूल में श्री माधव का शास्त्रोमुक्त स्थान है। विवरण है कि 1521 ई. में महान वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु ने यहां का दर्शन लाभ किया था।

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गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर बसे प्रयागराज में त्रिवेणी संगम से थोड़ी दूरी पर अकबर-कालीन विशाल किले के अंदर विशाल अक्षयवट वृक्ष स्थित है, जिसे मनोरथ वट कहा जाता है। उत्तरकालीन पुराणों में प्रयाग के इसी अक्षयवट का उल्लेख स्थान-स्थान पर हुआ है। कभी यहीं से लोग अपने समस्त कार्यों का सम्पादन कर जीवन के अंतिम दिनों में गंगा जी में छलांग लगाकर जल समाधि ले लिया करते थे।

पहले किले की पातालपुरी गुफा में एक सूखी डाली गाड़कर उसमें कपड़ा लपेटकर उसे ही अक्षयवट के रूप में पूजते थे, पर यमुना किनारे भाग में इसकी मूल स्थिति ज्ञात हुई। इस महापुण्यकारी वृक्ष का दर्शन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 634 ई. में किया था।

पुरी का वट वृक्ष
पुरुषोत्तम तीर्थ अर्थात जगन्नाथपुरी में प्राचीन काल में नीलांचल पर्वत पर ही सबकी इच्छा पूर्ण करने वाला कल्पतरु था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, माता सीता व भ्राता लक्ष्मण ने अपने वनवास काल में कुछ समय यहीं गुजारा था, इस कारण इसे कहीं-कहीं वनस्थली भी कहा गया है।

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जगन्नाथपुरी के अनेक कुंड़ों में एक रोहिणीकुंड के बारे में मान्यता है कि इस कुंड में सुदर्शन चक्र की छाया पड़ती है। यहां प्रत्येक अमावस्या के दिन दूर-दूर से भक्तों का आगमन होता है।

पंचवटी
पंचवटी का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जहां पीपल, बेल, वट, हड़ और अशोक, ये पांच वृक्ष लगे हों।’ दंडकारण्य (छत्तीसगढ़) क्षेत्र में भी एक पंचवटी नामक तीर्थ है, जो जगदलपुर से 62 कि.मी. की दूरी पर है।

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नासिक में काले राम मंदिर के पास सीता गुफा की बगल में ही पांच प्राचीन वट वृक्ष हैं, इसलिए यह स्थान पंचवटी कहलाया।

उज्जैन का वट वृक्ष
भारतवर्ष में महाकाल की नगरी के रूप में विभूषित उज्जैन के प्राचीन स्थलों में सिद्धनाथ एक पुराण प्रसिद्ध स्थान है। विवरण है कि यहीं इंद्रपुत्र जयंत के अमृत कलश की जो चार बूंदें सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के चार पुनीत पवित्र स्थलों पर टपकीं, उनमें एक स्थान यही है, जहां देवासुर संग्राम हुआ था। यहीं के प्राचीन वट को ‘सिद्धवट’ कहा जाता है।

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काशी का वट वृक्ष
काशी में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर द्वार से निकल कर श्री दुंडिराज गणेश स्थान की ओर चलने पर सर्वप्रथम बाएं मार्ग में श्री शनैश्चर मंदिर के पास महावीर जी के कोने में प्राचीन वट को अक्षयवट कहा जाता है। यहीं श्री ‘नकुलेश्वर’ व ‘द्रुपदादित्य महादेव’ का स्थान है। 

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झारखंड का वट वृक्ष

झारखंड राज्य में कहलगांव अनुमंडल में गंगा नदी के किनारे वटेश्वर पर्वत (पत्थरधट्टा पहाड़ी) पर वटेश्वर तीर्थ (वट पर्वनिका) है। वेदों, पुराणों, पाणिनीय आदि ग्रंथों में वट, वर्षा और वद्र्धन शिव शब्द के पर्याय के रूप में उल्लेखित हैं। वटेश्वर स्थान के साथ वट प्रवर्तक पर्व और वर्षावद्र्धन अनुष्ठान की चर्चा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव के वट, वटेश्वर, वटराज आदि पर्यायों के साथ वर्षावद्र्धन अनुष्ठान का घनिष्ठ संबंध रहा है।

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कुछ अन्य प्रसिद्ध वट वृक्ष
कोलकाता के बोटैनिकल गार्डन में स्थित वट वृक्ष तो विश्व का सबसे विशाल वट वृक्ष है। वहीं ओडि़शा में स्थित एक 500 वर्ष प्राचीन वट वृक्ष भी काफी लोकप्रिय है।

स्पष्ट है कि भारत में वट वृक्ष की स्थिति कायम है, जिनका अपना स्वर्णिम इतिहास व उज्ज्वल सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। महाभारत के वनपर्व में आया है कि संसार के सभी पापों का हरण करने वाले संसार रूपी वृक्ष (मोह माया) को नाश करने वाले तथा अक्षय वृक्ष प्रदान करने वाले वट वृक्ष को नमस्कार है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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