Amla Navami katha: आंवला नवमी की पौराणिक कथा के साथ पढ़ें महत्व

punjabkesari.in Tuesday, Nov 21, 2023 - 10:16 AM (IST)

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Amla Navami 2023: कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को ‘आंवला नवमी’ कहते हैं। इस नवमी को ‘अक्षय नवमी’ भी कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि ‘आंवला नवमी’ क्या है और यह क्यों मनाई जाती है ? साथ ही आंवला की उत्पत्ति कैसे हुई ? ‘आंवला नवमी’ के दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठ कर पूरे विधि-विधान के साथ संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती हैं। उत्तर व मध्य भारत में इस नवमी का खास महत्व है जिसका शास्त्रों में भी वर्णन है। 

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Amla Navami Vrat Katha: एक पौराणिक कथा के अनुसार एक कुष्ठ रोगी महिला को गंगा जी ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। इसके बाद महिला ने इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत एवं पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में यह परम्परा चली आ रही है। आंवला के गुणों के लिए भी यह पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। ‘आंवला नवमी’ के दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का भी चलन है। 

Story of origin of Amla आंवला की उत्पत्ति की कथा
आंवले को आयुर्वेद में बहुत लाभकारी और चमत्कारी बताया गया है। इसके साथ ही उसकी उत्पत्ति के विषय में एक कथा भी प्रचलित है। मान्यता के अनुसार, जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी और इस पर जिंदगी नहीं थी, तब बह्माजी कमल पुष्प में बैठ कर परबह्म की तपस्या कर रहे थे। वह अपनी कठिन तपस्या में लीन थे। तपस्या करते-करते बह्माजी की आंखों से ईश-प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे। कहते हैं इन्हीं आंसुओं से आंवले का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई। इस तरह आंवला वृक्ष सृष्टि में आया और यह एक लाभकारी फल हुआ।

Amla is full of nutrition पोषण से भरपूर है आंवला
आयुर्वेद के अनुसार आंवला एक अमृत फल है, जो कई रोगों का नाश करने में सफल है। साथ ही विज्ञान के अनुसार भी आंवले में विटामिन ‘सी’ बहुतायत में होता है, जो कि इसे उबालने के बाद भी पूर्ण रूप से बना रहता है। यह आपके शरीर में कोषाणुओं (सैल्स) के निर्माण को बढ़ाता है, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहता है।      

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Combined importance of Amla, Tulsi and Bilva आंवला, तुलसी तथा बिल्व का संयुक्त महात्म्य
भगवती तुलसी सभी देवताओं की परम प्रसन्नता को बढ़ाने वाली हैं। जहां तुलसी वन होता है वहां देवताओं का वास होता है और पितृगण परम प्रीतिपूर्वक तुलसीवन में निवास करते हैं। पितृ देवार्चन आदि कार्यों में तुलसीपत्र अवश्य प्रदान करना चाहिए। तुलसी को त्रिलोकीनाथ भगवान विष्णु, सभी देवी-देवताओं और विशेष रूप से पितृगणों के लिए परम प्रसन्नता देने वाली समझना चाहिए। इसलिए देव तथा पितृकार्यों में तुलसी पत्र अवश्य समर्पित करना चाहिए। जहां तुलसी वृक्ष स्थित है, वहां सभी तीर्थों के साथ साक्षात भगवती गंगा सदा निवास करती हैं। 

यदि अत्यंत भाग्यवश आंवले का वृक्ष भी वहां पर स्थित हो, तो वह स्थान बहुत अधिक पुण्य प्रदान करने वाला समझना चाहिए। जहां इन दोनों के निकट बिल्व वृक्ष भी हो, तो वह स्थान साक्षात वाराणसी के समान महातीर्थ स्वरूप है। उस स्थान पर भगवान शंकर, देवी भगवती तथा भगवान विष्णु का भक्ति भाव से किया गया पूजन महापातकों का नाश करने वाला तथा बहुपुण्यदायक जानना चाहिए। जो व्यक्ति वहां एक बिल्व पत्र भी भगवान शंकर को अर्पण कर देता है, वह साक्षात भगवान शिव के दिव्य लोक को प्राप्त करता है।  

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Content Writer

Niyati Bhandari

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