अहिल्याबाई थी धर्म की भावना की सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति

punjabkesari.in Saturday, Dec 30, 2017 - 05:03 PM (IST)

पदासीन होते ही समता की दृष्टि आनी चाहिए, पद के दुरुपयोग और मजबूरों का शोषण नहीं। राज सिंहासन संभालने के बाद महारानी अहिल्याबाई होलकर ने न सिर्फ व्यावहारिक समता की भावना को अपनाया बल्कि मंदिरों के जीर्णोद्धार से लेकर कुएं खुदवाने, प्याऊ बनवाने के साथ ही अन्नक्षेत्र भी शुरू करवाए जहां भूखों को भोजन भी मिलता था।

 
अहिल्याबाई होलकर सूबेदार मल्हार राव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं। इनका जन्म सन 1725 में हुआ था। अहिल्याबाई का कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित था पर उन्होंने कई ऐसे उत्कृष्ट कार्य किए जिससे हिंदू धर्म की पताका ऊंची रही। जब वह लगभग 42 वर्ष की थीं तब उनके पुत्र मालेराव का देहांत हो गया। कुछ वर्ष बाद दामाद यशवंत राव फणसे भी नहीं रहा और उनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई। दूर के संबंधी तुकोजीराव के पुत्र मल्हार राव पर उनका स्नेह था वह सोचती थीं कि आगे यही शासन-व्यवस्था संभालेगा पर उसने भी उन्हें दुख दिया। 


अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया, घाट बंधवाए, कुओं और बावडियों का निर्माण किया। मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्न क्षेत्र खोले। प्यासों के लिए प्याऊ बनवाए और हिंदूओं के लिए धर्म की भावना सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति रही है, अहिल्याबाई ने उसी का उपयोग किया। तत्कालीन अंधविश्वासों और रुढियों का उन्होंने खंडन और विरोध भी किया। मल्हार राव के भाईबंदों में तुकोजीराव होलकर एक विश्वासपात्र युवक थे। उन्हें राजकाज के लिए तैयार कर लिया गया था। अहिल्याबाई ने उन्हें अपना सेनापति बनाया। राज्य की चिंत्ता और अपने करीबियों की मृत्यु का वियोग अहिल्याबाई नहीं सह सकीं और अंतत: 13 अगस्त सन 1795 (तिथिनुसार भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी) को उनका निधन हो गया।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News