Acharya Ramchandra Shukla Story: शब्दों की शक्ति या मौन की गहराई? जानिए शुक्ल जी का मौन मंत्र
punjabkesari.in Monday, Oct 06, 2025 - 06:02 AM (IST)

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Acharya Ramchandra Shukla Story: श्रेष्ठ व्यक्ति धीरे से बोलता है और ईमानदार व्यक्ति धीरज से बोलता है, परंतु एक धनी व्यक्ति खुद कम बोलता है और उसका धन ज्यादा बोलता है। उसके द्वारा रखे गए कर्मचारी, नौकर-चाकर, वकील, ड्राइवर इत्यादि शरीर से कम कार्य करते हैं और जीभ से ज्यादा। एक धनी व्यक्ति चाहता है कि दूसरे उसकी महिमा में बोलें। उसे दूसरों से बात करने में भी अपनी शान कम होती दिखती है। कहा गया है, जब तक इंसान कंगाल रहे, कोई उत्पात नहीं करता, वही धनी हो जाए तो मुख से बात नहीं करता। मैं-मेरा की प्रधानता यदि किसी व्यक्ति से पहली मुलाकात होती है तो उसके शब्दों से उसके पैसे का अंदाजा लगाया जा सकता है। यदि कोई बोलता नहीं या बहुत कम बोलता है तो वह एक श्रेष्ठ चिंतक या आध्यात्मिक पुरुषार्थी हो सकता है।
आज के मनुष्य के बोल में ‘मैं’ व ‘मेरा’ की प्रधानता होती है। यदि किसी बड़बोले मनुष्य से यह कहा जाए कि आज सारा दिन तुम ‘मैं’ व ‘मेरा’ वाली कोई बात न करो तो उसके पास बोलने को कुछ नहीं बचता। तुम हार गए हिन्दी साहित्य के प्रथम इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल बहुत कम बोलने वाले माने जाते थे। वह बनारस में रहते थे। एक बार उनके दो शिष्यों में शर्त लग गई। एक ने कहा कि आचार्य जी से एक साथ पांच शब्द नहीं बुलवाए जा सकते। दूसरा शिष्य आचार्य का मुंह लगा था। उसने ताल ठोकी कि मैं चाहूं तो आचार्य जी से एक साथ पांच शब्द कहलवा सकता हूं।
वह आचार्य के पास गया और हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘गुरुदेव मैंने अपने मित्र से शर्त लगाई है कि आपसे एक बार में पांच शब्द अवश्य कहलवा दूंगा।’’ आचार्य मुस्करा कर बोले, ‘‘तुम हार गए।’’ और अपने काम में लग गए। लेखन कार्य से जुड़े किसी भी व्यक्ति के लिए मितभाषी होना अच्छा है। उसकी तीन उंगलियां कलम को तब नियंत्रित कर सकती हैं, जब एक जीभ पर नियंत्रण हो। स्याही खत्म होते ही कलम रुक जाती है, परंतु जीभ रूपी कलम की स्याही कभी खत्म नहीं होती, बल्कि इसमें तो कितने ही विरोधियों के उज्जवल चरित्र पर स्याही बिखेरने की क्षमता होती है। सन् 1925 में रिपब्लिकन दल के कॉल्विन कूलिज अमरीका के 30वें राष्ट्रपति बने थे। वह बेहद अंतर्मुखी, शांत व मितभाषी थे। एक बार वह गिरजाघर से प्रार्थना कर लौट रहे थे।
उनके मौन को तोड़ने के लिए उनकी पत्नी ने कहा, ‘‘आज की प्रार्थना में आपने पादरी का प्रवचन सुना?’’
कूलिज ने कहा, ‘‘हां।’’
पत्नी को उत्तर पसंद नहीं आया। अत: फिर पूछा, ‘‘पादरी के प्रवचन का मूल प्रसंग क्या था?’’ कूलिज ने जवाब दिया, ‘‘पाप।’’
पत्नी को जरा चिढ़ पैदा हुई और बोली, ‘‘आप जरा विस्तार से बतलाएं कि वह पाप के बारे में क्या-क्या कह रहे थे?’’
कूलिज की मितभाषिता फिर आड़े आ गई। वह शांत स्वर में बोले, ‘‘वह इसके (पाप) विरोध में बोल रहे थे।’’
यह विडंबना ही है कि किसी की अंतर्मुखता व मितभाषिता भी दूसरे को अच्छी नहीं लगती। उसे मौन का महत्व समझ में नहीं आता।