जीवन में अपनाएं ऐसा मार्ग जिस पर चलने से होता है परम सत्य का ज्ञान

punjabkesari.in Sunday, Sep 25, 2016 - 02:59 PM (IST)

साधना का मार्ग कठिन और लम्बा होता है। बिना विचलित हुए साधक इस मार्ग पर निरंतर चलता रहे तो निश्चित ही उसे परम सत्य का ज्ञान होता है। कठिन और लम्बे रास्तों के बाद मिली सफलता स्थाई और आनंददायक होती है। आसान और शार्टकट वाली संस्कृति भ्रष्टाचार ला रही है। 

 

इंसान को अपने जीवन के लिए वह रास्ता अपनाना चाहिए जिसके अंत में शांति, सुख और परमात्मा की प्राप्ति हो। जिन मार्गों पर ये नहीं मिलते उन पर चलकर दुख, अशांति और निराशा की प्राप्ति होती है। मानव को सत्याग्रह करने से पूर्व सत्याग्रही बनना चाहिए। सत्याग्रही बने बिना किए जाने वाले सत्याग्रह का कोई मोल नहीं है। मनुष्य को पहले स्वयं सत्य का साक्षात्कार करना चाहिए। जिस प्रकार एक आध्यात्मिक व्यक्ति की साधना सम्यक होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी चाहिए कि वह अपने जीवन में तथा क्रियाकलापों में एक सम्यता बनाए रखे। 

 

सम्यता का अर्थ है मध्य मार्ग। जिस प्रकार वीणा के तार यदि कम कसे हों या ज्यादा कस दिए जाएं तो सुर नहीं निकलते। सुर निकलने के लिए अधिक और कम के मध्य की स्थिति श्रेष्ठ होती है। उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में एक मध्य मार्ग अपनाकर चलना चाहिए। मनुष्य को परिवार में सभी सदस्यों का हाथ पकड़े रहना चाहिए लेकिन उनसे हाथ भर की दूरी भी बनाए रखिए। भाव यह है कि इतना नजदीक न रहो कि दूर जाते हुए डर लगे व इतना दूर न रहो कि पास आते हुए भय सताए। यही प्रमाणिकता है।


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