Workplace Stress: कर्मचारियों के ऊपर बड़ा संकट, खबर पढ़ उड़ जाएंगे होश

punjabkesari.in Monday, Aug 04, 2025 - 11:20 AM (IST)

बिजनेस डेस्कः देश की दिग्गज आईटी कंपनी TCS में हाल ही में हुई बड़े पैमाने पर छंटनी ने केवल टेक इंडस्ट्री को ही नहीं, बल्कि अन्य सेक्टरों को भी गहरे सोच में डाल दिया है। नौकरी जाने का डर अब कर्मचारियों की मानसिक सेहत पर सीधा असर डाल रहा है। डेडलाइन का दबाव, टारगेट पूरा करने की दौड़, खुद को साबित करने की जद्दोजहद और लगातार बढ़ती जिम्मेदारियों ने कार्यस्थल को मानसिक रूप से भारी बना दिया है।

जब काम का तनाव लेता है जान

मानसिक दबाव अब केवल असुविधा नहीं, बल्कि जानलेवा बनता जा रहा है। हाल ही में पुणे में एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के 52 वर्षीय चीफ मैनेजर ने सुसाइड कर लिया। अपने नोट में उन्होंने वर्कप्लेस प्रेशर को इसकी वजह बताया। इसी तरह एक साल पहले एक चार्टर्ड अकाउंटेंट अन्ना सेबेस्टियन की अत्यधिक वर्कलोड के चलते दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी। उनकी पहली पुण्यतिथि पर उनके पिता सिबी जोसेफ ने ‘अन्ना सेबेस्टियन इनिशिएटिव’ शुरू की, जिसका उद्देश्य युवाओं को कॉरपोरेट जीवन की सच्चाइयों से मानसिक रूप से तैयार करना है। उनका कहना है, “हमने उसे एक जहरीले वर्क कल्चर में खो दिया।” इस मामले ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचाई, जिसके बाद केंद्र सरकार ने जांच के आदेश दिए।

सरकारी नौकरियों में भी बढ़ता तनाव

यह समस्या केवल कॉरपोरेट सेक्टर तक सीमित नहीं है। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉन्फेडरेशन के वाइस प्रेसिडेंट श्रीनाथ इंदुचूदान के अनुसार, सरकारी बैंकों में भी कर्मचारियों की आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं। कर्मचारियों की कमी, अत्यधिक काम का दबाव और अस्थिर स्थानांतरण की नीतियां तनाव को और बढ़ा रही हैं। इंदुचूदान का दावा है कि पिछले एक दशक में 500 से अधिक बैंक कर्मचारियों ने आत्महत्या की है।

सर्वे में खुली चिंताजनक तस्वीर

CIEL HR Services की रिपोर्ट बताती है कि BFSI, कंसल्टिंग और अकाउंटिंग सेक्टर में लगभग 50% कर्मचारी हर हफ्ते 50 घंटे से अधिक काम कर रहे हैं। इनमें से 38% लोग नई नौकरी की तलाश में हैं। CEO आदित्य नारायण मिश्रा कहते हैं, “बर्नआउट अब अपवाद नहीं, बल्कि एक सामान्य स्थिति बन गई है।”

TeamLease Services के CEO कार्तिक नारायण का मानना है कि मानसिक सहयोग की सुविधाएं होने के बावजूद असली समस्या बरकरार है। वे कहते हैं, “जब निजी जीवन भी जटिल हो गया है, तब कार्यस्थल को ज्यादा संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण बनाना बेहद जरूरी है।”

कुछ कंपनियों ने दिखाई पहल

कुछ कंपनियां अब इस दिशा में कदम उठा रही हैं। प्रमैरिका लाइफ इंश्योरेंस ने ‘स्वस्थुम’ नाम से हेल्थ प्रोग्राम शुरू किया है, जिसमें मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाती है। HR प्रमुख शरद शर्मा के अनुसार, “तनाव धीरे-धीरे शरीर में घर करता है, इसलिए शुरुआती संकेतों को पहचानना जरूरी है।”

टाटा स्टील ने भी ‘वेलनेस पॉलिसी’ लागू की है, जिसमें ‘इमोशनल वेलनेस स्कोर’, ‘सेल्फ-अप्रूव्ड लीव’ और YourDOST जैसे प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से काउंसलिंग की सुविधा शामिल है। अब यह सेवा ठेका कर्मचारियों और उनके परिवारों को भी दी जा रही है।

केवल पहल नहीं, अब प्रणालीगत बदलाव की जरूरत

इन पहलों के बावजूद, भारत की अधिकांश कंपनियां मानसिक स्वास्थ्य को अभी भी व्यक्तिगत मुद्दा मानती हैं, जबकि यह पूरी प्रणाली से जुड़ी चुनौती है। “वेलनेस डे” या “मेडिटेशन ऐप” से आगे बढ़कर कंपनियों को काम करने के तरीके, मैनेजमेंट अप्रोच और मानवता आधारित कार्यसंस्कृति की ओर ध्यान देना होगा।

कर्मचारियों की सेहत और गरिमा को प्राथमिकता देना अब केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन गई है।
 


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Content Writer

jyoti choudhary

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