भारत की GDP से भी ज्यादा है इन कंपनियों के पास कैश, जिस पर नहीं लगा टैक्स

punjabkesari.in Sunday, May 07, 2017 - 04:22 PM (IST)

नई दिल्लीः एप्पल, गूगल, आईबीएम, फाइजर, पेप्सी, कोक, मैकडॉनल्ड्स जैसी दिग्गज अमरीकी कंपनियों के खातों में 2.6 ट्रिलियन डॉलर (करीब 1,672 खरब रुपए) रखे हैं जिन पर कोई टैक्स नहीं लगा है। यह बात वॉशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर टैक्स ऐंड इकनॉमिक पॉलिसी (आईटीईपी) की रिपोर्ट में कही गई है। यह अमरीकी कंपनियों की ओर से विदेशों में रखी गई सबसे बड़ी रकम है। इससे अमरीकी सरकार को बतौर टैक्स 767 बिलियन डॉलर (करीब 493 खरब रुपए) का शुद्ध घाटा हुआ है। 

153 देशों की कुल GDP के बराबर 
टैक्स से बची हुई यह 1,672 खरब रुपए की रकम 153 देशों की कुल जी.डी.पी. के बराबर, अमरीकी रक्षा बजट का 4 गुना और साल 2015 में सामाजिक सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, चिकित्सा सुविधा और बेरोजगारों पर अमरीकी सरकार की ओर से खर्च की गई राशि 2.45 बिलियन डॉलर (करीब 1,575 खरब रुपए) से भी ज्यादा है। 

भारत की जी.डी.पी. से भी ज्यादा ये करमुक्त नकदी का खजाना
अमरीकी कंपनियों का टैक्स से बचा यह खजाना भारत की जी.डी.पी. से भी बड़ा है। आई.टी.ई.पी. के रिचर्ड फिलिप्स के मुताबिक यह सूचना 10 हजार फाइलों की छानबीन से जुटाई गई है। ये फाइलें यू.एस. सिक्यॉरिटीज ऐंड एक्सचेंज कमिशन में कंपनियों की ओर से जमा की गई सालाना रिपोर्टों की हैं। टॉप 500 अमरीकी कंपनियों में 322 ने विदेशों में भारी मात्रा में संपत्ति इकट्ठा कर रखी है। 

टैक्स से कैसे बची कंपनियां?
अमरीकी टैक्स कोड में एक प्रावधान है जो कंपनियों को विदेशों में हुई कमाई पर तब तक टैक्स नहीं देने की अनुमति प्रदान करता है जब तक कि कमाई की वह रकम अमरीका नहीं आ जाती। फिलिप्स का कहना है कि जब विदेशी कमाई को तकनीकी तौर पर अमरीका भेजा दिया जाता है तो कंपनियों पर पूरा अमरीकी टैक्स रेट पे करना पड़ता है। इसमें पहले दे दिए गए विदेशी टैक्सों को घटा दिया जाता है।'

इस बड़ी रकम को देखते हुए अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक स्कीम का प्रस्ताव रखा है जिसके तहत कंपनियां अपने विदेशी खजाने को अमरीका लाकर उस पर एकबारगी 10 प्रतिशत टैक्स दे सकती हैं। वैसे अमरीका में कॉर्पोरेट टैक्स की दर 35 प्रतिशत है। ऐसे में कंपनियों को टैक्स पर बड़ी छूट ऑफर की जा रही है। 

गौरतलब है कि इससे पहले राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने भी साल 2004 में इसी तरह की स्कीम लाई थी जिसके तहत महज 5.25 प्रतिशत का एकबारगी टैक्स देना था। हालांकि, तब उस योजना को अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली थी क्योंकि कंपनियों ने विदेशों में टैक्स फ्री रकम रखने के मुकाबले इतनी कम दर से टैक्स देना भी मुनासिब नहीं समझा। 
 


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