सेबी ने सख्त किए कोलैट्रल से जुड़े नियम

punjabkesari.in Saturday, Jul 16, 2016 - 04:26 PM (IST)

नई दिल्लीः सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी सेबी ने रिस्क मैनजेमेंट को और मजबूत बनाने के लिए कोलैट्रल से जुड़े नियमों को और ज्यादा सख्त कर दिया है। सेबी ने क्लियरिंग कॉर्पोरेशन को निर्देश दिया है कि वे ट्रेडिंग और क्लियरिंग मेंबर या फिर उनसे जुड़े बैंकों द्वारा जारी एफ.डी.आर. यानी फिक्सड डिपॉजिट रिसीट को कोलैट्रल के रूप में स्वीकार न करें।

6 महीने में एफ.डी.आर. बदलने का निर्देश 
सेबी ने इसके साथ ही निर्देश दिया है कि अगर क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के पास इस तरह की कोई एफ.डी.आर. कोलैट्रल के रूप में रखी गई है तो वो 6 महीने के अंदर इसे किसी दूसरी कोलैट्रल से बदल लें। सेबी के मुताबिक इस तरह के कई मामले सामने आए हैं जहां बैंकों ने अपने द्वारा जारी एफ.डी.आर. को ही क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के पास कोलैट्रल के रूप में रखा है। ये बैंक या तो ट्रेडिंग मेंबर हैं या फिर स्टॉक एक्सचेंज और क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के क्लियरिंग मेंबर भी हैं।

ग्लोबल स्टैंडर्ड के हिसाब से सख्त किए गए नियम
सेबी के मुताबिक नियमों में सख्ती कोलैट्रेल के लिए पहले से जारी ग्लोबल स्टैंडर्ड के आधार पर किए गए हैं। इंटरनेशनल सिक्युरिटी रेग्युलेटर बॉडी ने सलाह दी थी की घरेलू मार्कीट को रिस्क मैनेजमेंट से जुड़े नियम इंटरनैशनल स्टैंडर्ड के हिसाब से ही तय करने चाहिए। सेबी के फैसले के मुताबिक नए नियमों के बाद क्लियरिंग कॉर्पोरेशन अपने ट्रेडिंग क्लियरिंग मेंबर से ऐसे एफ.डी.आर. बतौर कोलैट्रेल स्वीकार नहीं कर सकते, जो या तो उन्होने खुद जारी किए हों या फिर उनसे जुड़े बैंकों ने जारी किए हों।

 

कोलैट्रल किसी भी तरह के लोन से जुड़े जोखिम कम करने के लिए कर्ज दार के द्वारा दी जाने वाली सिक्युरिटी होती है। इसे कर्जदाता कर्जदार के डिफॉल्ट होने पर कैश करा सकता है। किसी ट्रेडिंग मेंबर द्वारा या ऐसे बैंक जो खुद ट्रेडिंग मेंबर हैं या उनसे जुड़े हैं, जारी एफ.डी.आर. को कोलैट्रल रखने से जोखिम काफी बढ़ जाता हैं।


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