Mutual Fund निवेशकों को राहत या झटका, SEBI ने फीस स्ट्रक्चर में किए बड़े बदलाव

punjabkesari.in Thursday, Dec 18, 2025 - 11:52 AM (IST)

बिजनेस डेस्कः Mutual Fund Expense Ratio: म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने एक बड़ा और अहम बदलाव किया है। यह बदलाव सीधे निवेशकों की जेब से जुड़ा है, क्योंकि अब म्यूचुअल फंड की फीस यानी एक्सपेंस रेशियो को नए तरीके से तय और दिखाया जाएगा। इस कदम का मकसद फंड्स से जुड़े खर्चों में पारदर्शिता बढ़ाना और छिपे हुए चार्ज पर लगाम लगाना है।

अब तक म्यूचुअल फंड का एक्सपेंस रेशियो एक तरह का पैकेज होता था, जिसमें फंड मैनेजमेंट फीस के साथ टैक्स और दूसरे सरकारी शुल्क भी शामिल रहते थे। इससे निवेशकों को यह समझना मुश्किल होता था कि फंड हाउस असल में कितनी फीस वसूल रहा है। इसे बदलते हुए सेबी ने अब ‘बेस एक्सपेंस रेशियो (BER)’ नाम का नया ढांचा पेश किया है।

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क्या है बेस एक्सपेंस रेशियो (BER)?

BER का मतलब है म्यूचुअल फंड चलाने की असल लागत। इसके तहत अब GST, सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (STT), स्टांप ड्यूटी, सेबी फीस और एक्सचेंज चार्ज को एक्सपेंस रेशियो में शामिल नहीं किया जाएगा। ये सभी शुल्क अब वास्तविक खर्च के आधार पर अलग से लगाए जाएंगे।

आसान शब्दों में कहें तो अब म्यूचुअल फंड का कुल खर्च चार हिस्सों में दिखेगा— BER, ब्रोकरेज चार्ज, रेगुलेटरी लेवी और स्टैच्यूटरी लेवी। इससे निवेशक साफ तौर पर देख पाएंगे कि उनका पैसा कहां खर्च हो रहा है।

एक्सपेंस रेशियो की सीमा में कटौती

सेबी ने अलग-अलग कैटेगरी में BER की अधिकतम सीमा भी घटा दी है। उदाहरण के तौर पर, इंडेक्स फंड और ETF के लिए यह सीमा 1% से घटाकर 0.9% कर दी गई है। इसी तरह इक्विटी आधारित फंड-ऑफ-फंड्स और क्लोज-एंडेड स्कीम्स में भी पहले के मुकाबले कम सीमा तय की गई है। इससे फंड हाउस पर मनमानी फीस वसूलने की गुंजाइश कम होगी।

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ब्रोकरेज चार्ज पर भी सख्ती

सेबी ने ट्रेडिंग से जुड़े ब्रोकरेज चार्ज पर भी नकेल कसी है। कैश मार्केट में ब्रोकरेज की अधिकतम सीमा 6 बेसिस पॉइंट तय की गई है, जबकि डेरिवेटिव्स सेगमेंट में इसे और कम किया गया है। इससे खासकर एक्टिव फंड्स की ट्रेडिंग लागत धीरे-धीरे घटने की उम्मीद है।

निवेशकों के लिए क्या बदलेगा?

शॉर्ट टर्म में निवेशकों को कोई बड़ा फायदा या नुकसान महसूस नहीं हो सकता, क्योंकि टैक्स और सरकारी शुल्क पहले की तरह लागू रहेंगे लेकिन लंबी अवधि में यह बदलाव पारदर्शिता बढ़ाएगा, छिपे खर्चों पर रोक लगाएगा और फंड हाउस को ज्यादा अनुशासित बनाएगा। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अब निवेशक आसानी से अलग-अलग फंड्स की तुलना कर सकेंगे और समझ पाएंगे कि कौन सा फंड वास्तव में किफायती है। 
 


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Content Writer

jyoti choudhary

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