बजट में उपकर, अधिभार हटाकर आयकर ढांचे को सरल बनाने की जरूरत: पूर्व वित्त सचिव
punjabkesari.in Sunday, Jan 16, 2022 - 07:06 PM (IST)

नई दिल्लीः पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने सरकार को सुझाव दिया है कि आगामी बजट में नौकरीपेशा और आम लोगों को राहत देने के लिए चार कर दरों का एक सरल आयकर ढांचा लागू किया जाए और विभिन्न उपकरों तथा अधिभार को समाप्त कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि यह राज्यों के लिए भी न्यायसंगत होगा।
गर्ग ने यह भी कहा कि वित्त मंत्री के लिये मुख्य चिंता 2022-23 के बजट में राजकोषीय घाटे को सामान्य स्तर पर लाने के साथ-साथ बढ़ती खाद्य और उर्वरक सब्सिडी को काबू में लाने की होगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अपना चौथा बजट एक फरवरी को पेश करेंगी।
गर्ग ने कहा, ‘‘मौजूदा स्थिति में कर ढांचा जटिल है। कई सारे उपकर, अधिभार, कर की दरें और स्लैब हैं। इसके अलावा छूट के बिना कम दर पर कर देने की सुविधा या छूट के साथ सामान्य दर पर कर के भुगतान की व्यवस्था ने करदाताओं के लिये कर संरचना को जटिल बना दिया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे में यह बेहतर होगा कि सरकार चार दरों का एक सरल आयकर ढांचा लागू करे और उपकरों तथा अधिभारों को समाप्त करे। यह राज्यों के लिये भी न्यायसंगत होगा।’’
उल्लेखनीय है कि अभी आयकरदाताओं को स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर के अलावा सालाना 50 लाख रुपए से अधिक आय पर अधिभार भी देना होता है। साथ ही उपकर और अधिभार से प्राप्त राजस्व राज्यों के बीच विभाजित नहीं होता जिसको लेकर वे समय-समय पर सवाल उठाते रहे हैं। एक सवाल के जवाब में गर्ग ने कहा कि कर छूट सीमा बढ़ाने का फिलहाल मामला नहीं है क्योंकि 2019-20 के बजट में किए गए प्रावधान के अनुसार जिन लोगों की भी आय पांच लाख रुपए सालाना से कम है, वे आयकर से मुक्त है।
पूर्व वित्त सचिव ने कहा कि वित्त मंत्री के लिए मुख्य चिंता 2022-23 के बजट में बढ़ती खाद्य, उर्वरक सब्सिडी के साथ मनरेगा पर बढ़े हुए खर्च को काबू में लाने की होगी। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने कोविड संकट को देखते हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के परिवारों के अंतर्गत आने वाले सभी 80 करोड़ व्यक्तियों को मुफ्त राशन 'पांच किलो गेहूं या चावल' देने का प्रावधान किया है। इस निर्णय से खाद्य सब्सिडी बिल करीब 2.4 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 4-4.25 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है। सालाना इसमें 1.6 लाख करोड़ रुपए से अधिक की वृद्धि हुई है।’’ ‘‘इसी प्रकार, सरकार के उर्वरक लागत और मनरेगा के तहत श्रमिक की मांग पर होने वाले खर्च में वृद्धि का बोझ उठाने के निर्णय का मतलब है कि 1.25 से 1.40 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च।’’
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