भारत में भी वैश्विक मंदी का असर, सुधार के प्रयास जारीः शक्तिकांत दास

punjabkesari.in Tuesday, Jul 23, 2019 - 09:58 AM (IST)

बिजनेस डेस्कः आर.बी.आई. के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि देश में विभिन्न सैक्टरों में चल रही मंदी वैश्विक स्तर पर आर्थिकता में आए स्लो डाऊन का ही हिस्सा है और आर.बी.आई. देश में तरक्की की रफ्तार को बढ़ाने के लिए सरकार के कदम से कदम मिलाकर सारे जरूरी कदम उठा रहा है। इकोनॉमी में मांग को बढ़ाने के लिए न सिर्फ सरकार ने बैंकों में कैपीटल के जरिए पैसा डालने का ऐलान किया है बल्कि ब्याज दरों में कमी करके भी आर.बी.आई. ने करीब 1 लाख करोड़ रुपए की लिक्विडिटी (कैश) मार्कीट में डाली है। इससे आने वाले समय में मांग में सुधार देखने को मिल सकता है। एक बिजनेस अखबार को दिए गए इंटरव्यू में शक्तिकांत दास ने आर्थिक स्थिति को लेकर तमाम सवालों के जवाब दिए। पेश है शक्तिकांत दास का पूरा इंटरव्यू :-

प्र. : क्या आपको लगता है कि पी.एस.यू. बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी से नीचे लाने के फैसले से कुछ मदद मिलेगी?
उ. : यह काम फिलहाल सरकार का है और सरकार को ही इस पर फैसला करना है। हम फिलहाल सिर्फ बैंकों के कंसालीडेशन पर काम कर रहे हैं। लिहाजा हमें देश के बड़े पी.एस.यू. बैंकों को कंसालीडेशन के बाद परफॉर्मैंस के लिए कुछ समय देना चाहिए। बैंकों का मालिकाना हक और बैंकों की एफीशिएंसी दो अलग-अलग मामले हैं। भारत के लिहाज से हमें यह भी समझना होगा कि पी.एस.यू. बैंक सरकार के कुछ कार्यक्रमों को लागू करने और लक्ष्यों को हासिल करने में अहम भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के तौर पर डायरैक्ट बैनीफिट ट्रांसफर सरकारी बैंकों के जरिए बेहतरीन तरीके से हो सकती है और इस काम को निजी सैक्टर के जरिए करना मुश्किल होगा।

प्र. : नोन बैंकिंग फाइनांशियल कम्पनियों (एन.बी.एफ.सी.) के पास पैसे की कमी है, इस पर क्या कहेंगे?
उ. : 1 जून के बाद सिस्टम में 1 लाख करोड़ रुपए की करंसी (तरलता) आई है। इसके अलावा एन.बी.एफ.सी. के लिए उठाए गए कदमों के चलते उन्हें 1,34,000 करोड़ रुपए मिलेंगे। बजट की घोषणा के बाद हमने यह भी कहा है कि यदि जरूरत हुई तो हम बाजार में तरलता बढ़ाने के लिए और भी कदम उठाएंगे। हालांकि कुछ बैंकों के पास पैसे की कमी हो सकती है। लिहाजा उसे भी दूर करने का प्रयास किया जाएगा। बतौर केंद्रीय बैंक हम बाजार में तरलता बढ़ाने के लिए जो कुछ कर सकते हैं, वह हम करेंगे और इसके अलावा हमें आर्थिक स्थिरता की तरफ भी ध्यान देना है और एन.बी.एफ.सी. की मजबूती के लिए भी काम करना है।

प्र. : आर्थिक स्थिति को लेकर आपका क्या आकलन है, प्राइवेट सैक्टर निवेश क्यों नहीं करता?
उ. : दुनिया इस समय मंदी के दौर से गुजर रही है और भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता। हालांकि 2017 तक लग रहा था कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा है लेकिन 2018 की दूसरी तिमाही में वैश्विक स्तर पर मंदी का माहौल है। हालांकि वैश्विक ग्रोथ को लेकर आई.एम.एफ. ने अच्छा आकलन दिया लेकिन यह स्थिति साफ नहीं है कि यह ग्रोथ कहां से आएगी। दुनिया की कुछ अर्थव्यवस्थाओं में नकारात्मकता का माहौल है और इन देशों में निवेश पर रिटर्न न के बराबर है या नैगेटिव है। इस सबके बीच दुनिया भर में चल रही ट्रेड वार से भी माहौल बिगड़ा है। हम कच्चे तेल की कीमतों में आ रहे उतार-चढ़ाव का भी सामना कर रहे हैं। कुल मिलाकर दुनिया मंदी में है और इसका असर भारत पर नजर आना 
तय है।

प्र.: रीयल एस्टेट व फाइनांस सैक्टर को लेकर किस तरह की समस्याएं सामने आ रही हैं?
उ. : हमने फाइनांस सैक्टर को लेकर काम किया है। रिजर्व बैंक ने बाजार में तरलता बढ़ाई है और ब्याज दरों में कमी की है। सरकार ने 3.3 फीसदी के फिस्कल डैफीसिट (राजकोषीय घाटा) के लक्ष्य को मैंटेन रखा है और आर.बी.आई. के नजरिए के लिहाज से एक अच्छा कदम है। पब्लिक सैक्टर अंडरटेकिंग बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपए की कैपीटल देने का प्रबंध किया जा रहा है। सरकार द्वारा एन.बी.एफ.सी. के लिए किए गए काम भी सकारात्मक हैं। यह चुनौतियों भरा समय है और इसमें तमाम पक्षों को अपनी भूमिका अदा करनी होगी।  रीयल एस्टेट सैक्टर की अपनी समस्याएं हैं। यह समस्या हाऊसिंग फाइनांस कम्पनियों व डिवैल्पर द्वारा अवर लिवरजिंग के कारण पैदा हुई है। इसे अब ठीक किया जा रहा है। कार्पोरेट सैक्टर से कुछ सुधार की खबरें आ रही हैं। बैड लोन की चुनौतियों से जूझ रहे बैंकिंग सैक्टर में अब सुधार के संकेत नजर आ रहे हैं और बैड लोन देशों में कमी आई है। बैंकों का क्रैडिट फ्लो भी सुधरा है। हालांकि सब कुछ ठीक नहीं है क्योंकि एम.एस.एम.ई. सैक्टर को अभी भी लोन मिलने में दिक्कतें आ रही हैं और इसमें सुधार की जरूरत है।

प्र.:  लिक्विडिटी व कैपीटल को लेकर एन.बी.एफ.सी. अभी भी चिंतित है, उन्हें चिंतामुक्त होने में कितना समय लग सकता है? 
उ. : मैंने यह नहीं कहा कि पॉलिसी को लेकर सारे एक्शन कर लिए गए हैं लेकिन जब-जब एक्शन की जरूरत होगी, हम बड़े फैसले लेंगे। बैंक अभी भी पूरी तरह चिंतामुक्त नहीं हैं। ग्रॉस नॉन-परफॉर्मिंग एसैट्स (जी.एन.पी.ए.) और प्रॉम्प्ट करैक्टिव एक्शन (पी.सी.ए.) में सुधार के साथ ही बैंकों में कॉन्फीडैंस लौटेगा। जब हम कुछ बैंकों को पी.सी.ए. से हटाते हैं तो हम साथ ही कहते हैं कि बैंकों के शीर्ष प्रबंधन की यह जिम्मेदारी है कि सुधार का यह सिलसिला किताबों में भी जारी रहेगा और उन्हें अगली तिमाही के लिए दिए गए लक्ष्य को हासिल करने की जिम्मेदारी भी दी जाती है लेकिन मैंने बैंकों को यह भी साफ किया है कि वे कुछ बैंक खातों को फ्रॉड बता कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते। 7 जून को आर.बी.आई. द्वारा निकाले गए सर्कुलर को बैंकों को बड़ी जिम्मेदारी दी गई है और उन्हें बाजार में फंसा पैसा वापस लेने के लिए लक्ष्य भी दिए गए हैं। पिछली कुछ तिमाहियों में बैंकों ने अच्छे नतीजे दिए हैं और बैंकों के प्रमुखों के साथ भी मेरी बैठक में सुधार के संकेत मिले हैं।

प्र.: निवेश की रफ्तार नहीं बढ़ रही, यह रफ्तार कौन रोक रहा है? 
उ. :
जहां तक भारत का सवाल है यहां पर इसके कई कारण हैं। हमने ऑटो मोबाइल सैक्टर के दिग्गजों के साथ मीटिंग की तो पता चला कि भारत में अगले साल लागू होने वाले बी.एस. 6 नॉम्र्स के चलते गाडिय़ों की बिक्री थम गई है जिसके चलते ऑटो सैक्टर में मंदी है। रिजर्व बैंक का अपना सर्वे कहता है कि सरकार द्वारा गाड़ी की खरीद के साथ 3 साल का बीमा करवाने के नियम के चलते भी ऑटो सैक्टर में मंदी आई है। इस सबके बीच एन.बी.एफ.सी. सैक्टर में पैसे की कमी होना और ऑटो सैक्टर में कंज्यूमर को लोन न मिल पाने के चलते भी निवेश पर ब्रेक लगा है। टैक्सटाइल सैक्टर की अपनी दिक्कतें हैं।

प्र. : क्या पब्लिक सैक्टर के बैंकों का प्रबंधन प्रतिस्पर्धा की चुनौती में सक्षम है?
उ. : सरकार द्वारा बैंकों को दिए गए पैसे के चलते बैंकों की जिम्मेदारी बढ़ी है। मैंने सरकारी बैंकों के प्रमुखों को साफ कहा है कि बैंकों की परफॉर्मैंस का आधार बैड लोन देशों में सुधार के कारण नहीं माना जाएगा क्योंकि सरकार द्वारा बैंकों को कैपीटल दिए जाने के कारण बैड लोन देशों में सुधार तय है और परफॉर्मैंस का सुधार बैंकों द्वारा बाजार से पैसे को इकट्ठा करने को माना जाएगा। बैंकों के विलय की प्रक्रिया चल रही है। इससे भी प्रबंधन के स्तर पर चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी और बढिय़ा प्रबंधन के चलते बैंक बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएंगे।

प्र. : बजट के दौरान वित्त मंत्री ने पी.एस.ई. बैंकों में रिफॉम्र्स के संकेत दिए हैं, क्या उम्मीद की जा सकती है?
उ. : सरकार का फोकस गवर्नैंस रिफॉर्म पर है। इस मामले में आर.बी.आई. ने सरकार को कई सुझाव भेजे हैं। हमने प्रबंधकों के पद की अवधि के अलावा उनकी जिम्मेदारी तय करने और बैंकों को सुचारू रूप से चलाने को लेकर लिखित सुझाव दिए हैं। इसके अलावा बैंकों के बोर्ड की भूमिका को लेकर भी सरकार को लिखा गया है और यह भी सुझाव दिया गया है कि वह बैंकों के सी.ई.ओका की भूमिका को भी पुन: निर्धारित करें। इस काम में बोर्ड ऑफ डायरैक्टर एक कमेटी की मदद ले सकता है या इस काम में माहिरों की सेवाएं ली जा सकती हैं।

प्र. : बैंक अधिकारियों में जांच एजैंसी को लेकर भय का माहौल है, इस पर आप क्या कहेंगे? 
उ. :
कुछ मामलों में सरकार द्वारा लिए गए फैसलों से बैंकों में डर का माहौल तो बना है। हमें बैंकों में फैसले लेने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना होगा और ये फैसले पूरी तरह सोच-समझ कर लिए जाने चाहिएं यानी हर फैसले के लिए कोई लॉजिक होना चाहिए। एक बार नतीजे लेने की प्रक्रिया और इस प्रक्रिया के रिकार्ड के काम में सुधार हो गया तो इससे भय का माहौल खुद खत्म हो जाएगा। इसके अलावा इंटरर्नल कंट्रोलर के जरिए भी भय के इस माहौल को खत्म किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में जब जांच एजैंसियों के पास मामला जाएगा तो वे खुद-ब-खुद समझ जाएंगी कि फैसले किस आधार पर लिए गए हैं।

प्र. : एन.बी.एफ.सी. को बैंक का दर्जा देने के मामले में क्या आर.बी.आई. के रुख में नरमी हो सकती है? 
उ. :
एन.बी.एफ.सी. को ऑटोमैटिक स्तर पर बैंकों में तबदील नहीं किया जा सकता। बैंकिंग लाइसैंस के लिए कोई भी आवेदन कर सकता है। आर.बी.आई. इन आवेदनों की समीक्षा करता है और जो आवेदन आर.बी.आई. के नियमों पर खरे उतरते हैं, उन्हें बैंकिंग लाइसैंस दे दिया जाता है लेकिन एन.बी.एफ.सी. को सीधे तौर पर बैंकिंग का दर्जा नहीं दिया जा सकता।

प्र. : आर.बी.आई. और सरकार के रिश्तों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले थे, अब रिश्ते कैसे हैं?
उ. : इसे आप खुद तय करिए और यह सोचिए कि मैंने ज्वॉइनिंग के पहले दिन क्या कहा था। मैं सभी पक्षों के साथ-साथ सरकार की राय लेना जरूरी समझता हूं क्योंकि सरकार की भूमिका किसी भी पक्ष से बड़ी है। लिहाजा आंतरिक विचार चर्चा और सलाह के जरिए सारे मुद्दे हल किए जा सकते हैं। सरकार और मंत्रालय के बीच भी कोई भी फैसला लेने से पहले विचारों का टकराव होता है लेकिन इसके बावजूद बातचीत के जरिए बड़े फैसले लिए जाते हैं। 


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Supreet Kaur

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