Google को झटका, भारत से विदेश रकम भेजने पर देना होगा टैक्स

punjabkesari.in Wednesday, Oct 25, 2017 - 11:56 AM (IST)

नई दिल्लीः दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट सर्च इंजन गूगल के लिए एक बुरी खबर है। गूगल इंडिया के साथ छह वर्ष पुराने विवाद में फैसला आयकर विभाग के पक्ष में आया है। यह विवाद गूगल इंडिया और उसके आयरलैंड में मौजूद दफ्तर के बीच फंड फ्लो से जुड़ा था। बेंगलुरु में आयकर विभाग ने पाया था कि गूगल इंडिया कई वर्षों से भारत में विज्ञापन से मिलने वाले रेवेन्यू का एक हिस्सा गूगल आयरलैंड (जी.आई.एल.) को भेज रही थी। उसने इन ट्रांजैक्शंस पर आपत्ति जताई थी। विभाग के अनुसार गूगल आयरलैंड को फंड भेजने पर कोई टैक्स नहीं काटा जा रहा था, जो टैक्स से बचने का एक स्पष्ट मामला था।

गूगल ने किया था दावे का विरोध
गूगल इंडिया ने विभाग के इस दावे का विरोध किया था। यह विवाद वित्त वर्ष 2007-08 से 2012-13 से जुड़ा था। इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल (आई.टी.ए.टी.) ने गूगल इंडिया की अपील खारिज करते हुए कहा, 'गूगल इंडिया और जी.आई.एल. का इरादा स्पष्ट है कि वह भारत में टैक्स का भुगतान करने से बचना चाहती थी। गूगल इंडिया का कर्तव्य था कि वह जी.आई.एल. को भुगतान के समय टैक्स काटे, लेकिन कोई टैक्स नहीं काटा गया और भुगतान करने के लिए कोई अनुमति भी नहीं ली गई।'

चुकाना होगा 1457 करोड़ रुपए पर टैक्स
गूगल इंडिया को अब 1,457 करोड़ रुपए की रकम पर टैक्स डिमांड मिल सकती है। कंपनी ने यह रकम गूगल आयरलैंड को भेजी थी। गूगल इंडिया और गूगल आयरलैंड के बीच संबंध का केंद्र 'ऐडवर्ड्स' प्रोग्राम है। यह ऐसा प्रॉडक्ट है, जिसके जरिए एक ऐडवर्टाइजर वेबसाइट पर विज्ञापन प्रकाशित कर सकता है। गूगल इंडिया भारतीय ऐडवर्टाइजर्स के लिए गूगल आयरलैंड से ऐडवर्ड्स प्रोग्राम की ऑथराइज्ड डिस्ट्रिब्यूटर है। गूगल इंडिया अमरीका की गूगल इंटरनैशनल एल.एल.सी. की सब्सिडियरी है।

क्या कहा था गूगल ने
गूगल इंडिया ने कहा था कि गूगल आयरलैंड ने उसे इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स ट्रांसफर नहीं किए थे और वह केवल ऐडवर्टाइजिंग स्पेस की एक डिस्ट्रिब्यूटर है। उसके पास ऐडवर्ड्स प्रोग्राम को चलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर या प्रोसेस की कोई पहुंच या नियंत्रण नहीं है। लेकिन इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल के अनुसार, गूगल इंडिया ने गूगल आयरलैंड से इन्फर्मेशन और पेटेंट वाली टेक्नॉलजी का इस्तेमाल किया है और इस वजह से किसी विदेशी कंपनी को भुगतान करना रॉयल्टी की मद में आता है जिस पर कानून के तहत कॉन्ट्रैक्ट वाले देश, भारत में टैक्स चुकाना होगा।
 


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