नई सरकार में वित्त मंत्रालय को व्यस्त रखेगा पूर्ण बजट और लंबित सुधारों का क्रियान्वयन
punjabkesari.in Monday, Jun 10, 2024 - 11:46 AM (IST)
मुंबईः नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली गठबंधन सरकार के तहत वित्त मंत्रालय के सामने पहली चुनौती करीब एक महीने में 2024-25 के लिए पूर्ण बजट पेश करने की होगी। वित्त मंत्रालय हालांकि पूर्ण बजट के लिए पहले ही शुरुआती काम को आगे बढ़ा चुका है, उम्मीद की जा रही है कि वह जल्द ही बजट पर उद्योग से संपर्क की प्रक्रिया शुरू करेगा।
क्या सरकार राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 5.1 फीसदी रखने के लक्ष्य पर टिकी रहेगी, (जैसा कि फरवरी में पेश अंतरिम बजट में कहा गया था) या आक्रामक तौर से राजकोषीय मजबूती की ओर बढ़ेगी, इस पर लोगों की नजर रहेगी। इसकी वजह यह है कि सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक से रिकॉर्ड 2.1 लाख करोड़ रुपए का लाभांश मिला है। एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने कहा है कि वह अगले दो साल के लिए भारत के राजकोषीय समेकन पर नजदीक से निगरानी करेगी और रेटिंग को अपग्रेड कर सकती है अगर सरकार राजकोषीय मोर्चे पर प्रतिबद्ध बनी रहती है।
वित्त मंत्रालय एक विवाद का निपटान कर सकता है, जो वित्त वर्ष 24 के बजट में आयकर अधिनियम के संशोधन से उभरा है। इसमें अनिवार्य किया गया है कि अगर कोई बड़ी कंपनी लिखित करार के मामले में एक एमएसएमई को 1 अप्रैल 2024 के बाद 45 दिन के भीतर भुगतान नहीं करती है तो वह उस खर्च को कर योग्य आय से नहीं घटा सकेगी, जिससे उसे संभावित तौर पर ज्यादा कर चुकाना होगा।
हालांकि ट्रेडरों और कुछ निश्चित एमएसएमई ने आशंका जताई है कि कंपनियां अपंजीकृत एमएसएमई की ओर कारोबार शिफ्ट कर सकती हैं, जिससे पंजीकृत एमएसएमई को नुकसान होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने इस पर फिर से विचार करने का संकेत दिया था और कहा था कि बजट से पहले एमएसएमई इस संबंध में अपना पक्ष मंत्रालय के सामने रखें। वित्त मंत्रालय काफी समय से लंबित आईडीबीआई बैंक, शिपिंग कॉरपोरेशन और एनएमडीसी की रणनीतिक बिक्री के काम में तेजी ला सकता है, जो अभी विभिन्न चरणों में हैं।
दूसरा, वह विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों के द्वितीयक बाजार पेशकश को भी फास्ट ट्रैक पर लाने की कोशिश करेगा क्योंकि मूल्यांकन अनुकूल हैं और कुल मिलाकर वित्तीय संतुलन बनाए रखने के लिहाज से यह सही होगा। हालांकि केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों (सीपीएसई) और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) के निजीकरण या विनिवेश की नई योजना मौजूदा वित्त वर्ष में पीछे रह सकती है क्योंकि इसके लिए गठबंधन साझेदारों के बीच काफी राजनीतिक आम सहमति की दरकार होगी।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मोर्चे पर दरों को व्यावहारिक बनाने की गठबंधन सरकार की कोशिश के तहत जीएसटी परिषद को पूरी कवायद सावधानीपूर्वक आगे बढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है। दरों में बदलाव की समीक्षा के लिए राज्य समिति का दोबारा गठन करने की जरूरत पड़ सकती है, जिसमें गठबंधन के कुछ सदस्य शामिल हो सकते हैं। राज्यों को उपकर पर मुआवजे का मसला और पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाने का मामला फिर उभर सकता है और परिषद में इस पर चर्चा की दरकार हो सकती है।
प्रत्यक्ष कर के मामले में काफी समय से लंबित प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) के क्रियान्वयन को प्राथमिकता मिल सकती है। साल 2019 में डीटीसी तैयार करने के लिए गठित टास्क फोर्स ने रिपोर्ट का मसौदा सौंप दिया था। इसके कुछ सुझाव स्वतंत्र रूप से लागू किए गए हैं। नई सरकार खासतौर से डिजिटल क्षेत्र में उभरते कर के मसले को ध्यान में रखते हुए संहिता पर फिर से विचार कर सकती है। पूंजीगत लाभ कर की व्यवस्था में सुधार, जुर्माने को प्रशासित करने वाले कानून पर दोबारा काम और सभी परिसंपत्ति वर्ग के कराधान में एकरूपता लाना वित्त मंत्रालय के एजेंडे के अन्य विषय वस्तु हैं।
वित्त मंत्रालय काफी समय से लंबित बीमा अधिनियम में संशोधन को भी प्राथमिकता दे सकता है। कम्पोजिट लाइसेंस समेत विभिन्न बदलाव का प्रस्ताव करने वाले लंबित विधेयक के लिए हालांकि गठबंधन साझेदारों बीच बड़ी राजनीतिक आम सहमति की दरकार पड़ सकती है।