दोगुना से अधिक बढ़ी बैंकों की धोखाधड़ी, 2019-20 में हुई 1.85 लाख करोड़ रुपए की हेराफेरी

punjabkesari.in Wednesday, Aug 26, 2020 - 11:52 AM (IST)

नई दिल्लीः बैंकिंग क्षेत्र में 1 लाख रुपए और उससे अधिक की राशि वाले धोखाधड़ी के मामलों में 2018-19 के मुकाबले 2019-20 की अवधि में दोगुने से अधिक का इजाफा हुआ है। 2019-20 में धोखधड़ी की रकम 1.85 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई जो 2018-19 में 71,543 करोड़ रुपए थी। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो 2019-20 में धोखाधड़ी के कुल मामले 28 फीसदी बढ़कर 8,707 हो गए जो 2018-19 में 6,799 थे। ये जानकारी 2019-20 के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वार्षिक रिपोर्ट में दी गई है। 
 
एक ओर जहां धोखाधड़ी के मामलों और इसमें शामिल रकम बहुत अधिक है, वहीं रिजर्व बैंक ने कहा है कि इन मामलों के घटने की तारीख पिछले कई वर्ष के हैं। रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा, 'ऋण पोर्टफोलियो (अग्रिम श्रेणी) में संख्या और रकम दोनों ही स्तर पर पहले से ही धोखाधड़ी के मामले हो रहे थे।'

रिजर्व बैंक ने कहा कि यह मोटी रकम वाले धोखाधडिय़ों का संग्रह है। ऋण संबंधी शीर्ष 50 धोखाधड़ी के मामलों की रकम 2019-20 में दर्ज किए गए कुल मामलों की रकम का 76 फीसदी है। एक ओर जहां 2019-20 में मूल्य और संख्या दोनों स्तर पर ही धोखाधड़ी के मामले बढ़ हैं, वहीं आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-जून 2020 की अवधि में धाोखाधड़ी के कुल 1,558 मामले दर्ज हुए जिसकी कुल राशि 28,843 करोड़ थी। यह 2019 की समान अवधि में दर्ज किए गए 2,024 मामलों जिसकी रकम 42,228 करोड़ रुपए है, से कम है।  धोखाधड़ी में शामिल कुल रकम में अग्रिमों की हिस्सेदारी 98 फीसदी है।

2019-20 में दर्ज किए धोखाधड़ी की कुल रकम में जहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी 80 फीसदी है वहीं निजी बैंकों का हिस्सा 18.4 फीसदी है। केंद्रीय बैंक के नियमों के मुताबिक यदि बैंकों की ओर से किसी खाता को फर्जी के तौर पर चिह्िनत किया गया है तो उन्हें इसके खिलाफ 100 फीसदी प्रावधान करना होता है, फिर से एक बार में या चार तिमाहियों में किया जाए।

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि धोखाधड़ी होने की तारीख और बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं की ओर से उसकी पहचान करने के बीच का औसत अंतर 2019-20 में 24 महीने था। लेकिन मोटी रकम वाले मामलों की पहचान करने में औसत से भी अधिक समय लगा।

रिजर्व बैंक ने कहा, 'हालांकि, 100 करोड़ रुपए और उससे ऊपर की धोखाधड़ी जैसे मामलों में औसत अंतर 63 महीनों का रहा।' इसमें कहा गया है कि इनमें से ज्यादातर खातों में ऋण सुविधा की मंजूरी की तारीख बहुत पुरानी है।

रिजर्व बैंक ने कहा कि बैंकों की ओर से शीघ्र चेतावनी संकेतों (ईडब्ल्यूएस) को लचर तरीके से लागू करने, आंतरिक लेखा परीक्षा के दौरान ईडब्ल्यूएस का पता नहीं चलने, फॉरेंसिक लेखा परीक्षा के दौरान कर्जदारों की ओर से असहयोग, अधूरी लेखा रिपोर्ट और संयुक्त ऋणदाता बैठक में निर्णय लेने में कमी आदि के कारण इन गड़बडिय़ों का पता लगाने में देरी हुई। 
 


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jyoti choudhary

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