बजट में प्रस्ताव, डिजिटल टैक्स की होगी शुरुआत

punjabkesari.in Monday, Feb 05, 2018 - 02:53 PM (IST)

नई दिल्लीः वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बार बजट में उन विदेशी डिजिटल एंटिटिज को टैक्स के दायरे में लाने का विचार रखा है जिनका देश में बड़ा यूजर बेस या बिजनस है, लेकिन उनका अस्तित्व यहां नहीं है। मसलन, फेसबुक, गूगल या नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियों के भारत में लाखों यूजर हैं, लेकिन इन कंपनियों का संचालन विदेशों से होता है। हालांकि, ऐसी कंपनियों के दफ्तर भारत में भी हैं, लेकिन उनका ऑपरेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर यहां नहीं है।

फेसबुक से टैक्स वसूलना मुश्किल का काम
बजट में पहली बार इस बात का जिक्र किया गया है कि केंद्र सरकार इनकम टैक्स ऐक्ट 9 में संशोधन कर ऐसी विदेशी डिजिटल कंपनियों से टैक्स वसूलने की तरफ कदम बढ़ा रही है। सरकार के इस कदम से न केवल गूगल, फेसबुक और नेटफ्लिक्स जैसी बड़ी कंपनियों पर असर पड़ेगा, बल्कि भारत में कारोबार करनेवाली इंटरनेट आधारित छोटी विदेशी कंपनियां भी इसके दायरे में आएंगी। भारत सरकार भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि यह इतना आसान नहीं है और इसीलिए वह आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओई.सी.डी.) के अंतर्राष्ट्रीय कर ढांचे के अंतर्गत यह कर वसूलने का प्रस्ताव रख सकती है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि अमेरिका आपत्ति नहीं करे। अमेरिका राजी हो गया तब भी इसमें कम से कम तीन साल लग जाएंगे।

भारत को कर संधियों पर दोबारा बातचीत करनी होगी
यह ढांचा बहुआयामी व्यवस्था (एमएलआई) है, जिसे आधार में क्षरण पर रोक लगाने और मुनाफे को कहीं और जाने से रोकने के लिए कर संबंधी उपाय लागू करने के मकसद से अपनाया जाता है। अगर सरकार इस पर चलती है तो उसे अलग-अलग देशों के साथ हुई द्विपक्षीय संधियों में संशोधन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 2018-19 के बजट में भारत डिजिटल कंपनियों के उपयोगकर्ताओं की भारी संख्या वाला और भारी भरकम कारोबार वाला ऐसा पहला देश बन गया है, जिसने उन कंपनियों से कर वसूलने की बात कही है। इसके लिए आयकर अधिनियम में उपयुक्त बदलाव करने का प्रस्ताव रखा गया है। लेकिन दोहरे कराधान से बचाव की मौजूदा संधियां उस संशोधन के दायरे में नहीं आएंगी, इसीलिए फेसबुक, गूगल जैसी दूसरी कंपनियों से कर वसूलने के लिए भारत को संधि में बदलाव करना पड़ेगा।

अमेरिका के साथ संधि मुश्किल का काम
अधिकारियों के मुताबिक अमेरिका के साथ संधि पर दोबारा बातचीत करना बहुत मुश्किल काम है। पिछली बार करीब 20 साल तक बातचीत के बाद 1989 में संधि पर हस्ताक्षर हो पाए थे। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, 'अमेरिका के साथ संधि में संशोधन करना तब तक मुश्किल है, जब तक वह खुद ही प्रावधान उसमें शामिल करना नहीं चाहता है। अगर भारत-अमेरिका संधि में पांच साल के भीतर भी संशोधन हो पाए तो खुद को खुशकिस्मत समझा जाएगा। फिलहाल हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि प्रस्तावित प्रावधान पहले से मौजूद संधियों पर लागू नहीं होगा।'


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