''एक लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिति यूरोपीय संघ से बेहतर''

punjabkesari.in Saturday, Mar 26, 2016 - 05:18 PM (IST)

नई दिल्ली: भारत और यूरोपीय संघ में विविधता से जुड़े मुद्दों की तुलना करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिय़ा ने आज कहा कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्रिक देश भारत एक संगठित इकाई के तौर पर यूरोपीय संघ से बेहतर स्थिति में है और आने वाले दशकों में यह देश और अधिक तेजी से आर्थिक वृद्धि करेगा।   

विख्यात अर्थशास्त्री पनगढिय़ा ने यहां उद्योग मंडल सी.आई.आई. के एक कार्यक्रम में कहा कि भारत अपनी विशाल विविधता और विभिन्न परंपराओं तथा संस्कृतियों के बावजूद यह संगठित इकाई रहा है। वह भारत को अक्सर ‘हंगामे वाला लोकतंत्र’ बताए जाने से जुड़े एक सवाल का जवाब दे रहे थे।   

पनगढिय़ा ने इसी संदर्भ में अर्थशास्त्री जगदीश भगवती का हवाला दिया जिन्होंने सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री ली कुआन इयू की इसी तरह की टिप्पणी पर कहा था, ‘आप को यह शोर लगता है, मुझे संगीत।’ उन्होंने कहा, ‘‘इसी से सब बातें साफ हो जाती हैं। जारा इसके बारे में सोचें, यूरोपीय देशों में भारत के मुकाबले बहुत कम विविधता है पर आज भी उन्हें एक राज्य के रूप में संगठित होने लिए लडऩा पड़ रहा है। एकीकृत यूरोप की पूरी मुहिम अड़चनों से घिरी है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘एकल मौद्रिक संघ को लेकर भी आशंका है कि यूनान इस संघ से बाहर निकल सकता है और कल को हो सकता है स्पेन भी मौद्रिक संघ से बाहर हो जाए।’’ उन्होंने कहा कि इसके ठीक उलट, भारत उससे कहीं अधिक विविधता के साथ एक राष्ट्र बना हुआ है।  

पनगढिय़ा ने कहा, ‘‘हम न सिर्फ इकट्ठे रहे हैं बल्कि देश समय के साथ विकसित हुआ है। आज के हंगामे के बीच हम भूल जाते हैं कि हमें 1950 और 1960 के दशक में भाषा आदि के आधार पर कई तरह के अलगाववादी आंदोलनों का सामना करना पड़ा था।’’

पनगढिय़ा ने कहा, ‘‘इसलिए इसे मैं भारतीय लोकतंत्र की बड़ी सफलता के तौर पर देखता हूं। मुझे लगता है कि मैं इसे किसी और तरीके से नहीं देख सकता। दीर्घकालिक स्तर पर अगले 15-30 साल में हम देखेंगे कि हमारी वृद्धि दर 8-10 प्रतिशत की राह पर लौट चुकी होगी।’’  

पनगढिय़ा ने कहा कि भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि और समावेशी करने की जरूरत है। देश की आर्थिक वृद्धि का स्वरूप कुछ अलग रहा है। इसी संदर्भ में उन्होंने कहा कि सिंगापुर, ताइवान, दक्षिण कोरिया और हाल में चीन की वृद्धि श्रम गहन उद्योगों की तेज वृद्धि के जरिए हुई। उससे भारी संख्या में रोजगार पैदा हुए और फिर सेवा क्षेत्र की अगुवाई में ये अर्थव्यवस्थाएं आगे बढीं। उन्होंने कहा, ‘‘हमें श्रम-केंद्रित उद्योग के लिए बेहतर माहौल बनाने की जरूरत है ताकि हमारे उद्योग देख सकें कि लोगों के जरिए क्या किया जा सकता है तथा मशीनों के जरिए क्या किया जा सकता है।’’  

पनगढिय़ा ने कहा कि जोर इस बात पर नहीं दिया जाना चाहिए कि मशीनों का उपयोग कैसे बढ़े बल्कि उद्योग को सही मिश्रण की तलाश करनी चाहिए ताकि वृद्धि का समान रूप से विस्तार हो सके। भारत की वृद्धि की संभावना के संबंध में उन्होंने कहा कि देश में विशाल संभावनाएं हैं।


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